ब्रोकली की खेती

By: tractorchoice
Published on: 13-Jan-2025
ब्रोकली की खेती

किसान भाइयों अगर आप खेती से ज्यादा मुनाफा कमाना चाहते हैं, तो आपको लीक से हटकर फसलीय उत्पादन करना होगा। 

परंपरागत खेती से किसानों को काफी अच्छा मुनाफा अर्जित करना पड़ता है। ब्रोकली भारतीय कृषकों की आमदनी को बढ़ाने वाली काफी सहायक फसल है। 

ब्रोकली एक शीतकालीन फसल है, इसका मुख्य रूप से उत्पादन बसंत ऋतु में किया जाता है। 

ब्रोकली की फसल में कैल्शियम, आयरन और विटामिन इत्यादि पोषक भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। ब्रोकली की फसल में 3.3% फीसद प्रोटीन और विटामिन ए और सी की पर्याप्त मात्रा विघमान होती है। 

ब्रोकली की फसल के अंदर रिवोफलाईन , नियासीन और थियामाइन की काफी मात्रा में शामिल होती है। साथ ही, कैरोटिनोइड्ज भी काफी अच्छी मात्रा में पाया जाता है। 

ब्रोकली का उपयोग विशेष रूप से लोग सलाद के रूप में करते हैं। साथ ही, इसको हल्का पकाकर भी खाने के लिए प्रयोग किया जा सकता है। इसको विशेष तौर पर ताजा, ठंडा करके अथवा सलाद के लिए बिक्री किया जाता है।  

ब्रोकली की खेती के लिए उपयुक्त मृदा 

ब्रोकली की खेती के लिए उचित एवं शानदार वृद्धि हेतु नमी वाली मृदा की आवश्यकता पड़ती है। ब्रोकली की खेती के लिए बेहतरीन खाद वाली मृदा अच्छी मानी जाती है। 

ब्रोकली की खेती के लिए मृदा का pH मान 5.0-6.5 तक होना चाहिए। सामान्यतः ब्रोकली (Broccoli) के पौधों के समुचित वृद्धि और विकास के लिए ठंडी और आर्द जलवायु उपयुक्त होती है।

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ब्रोकली की मशहूर प्रजातियाँ और उत्पादन क्षमता 

पालम समृद्धि 

ब्रोकली की पालम समृद्धि किस्म वर्ष 2015 में विकसित की गई थी। पालम समृद्धि किस्म में कोमल, बड़े और हरे रंग के पत्ते लगते हैं। 

ब्रोकली का फल गोल, घना और हरे रंग का होता है। ब्रोकली के फल का औसतन वजन 300 ग्राम होता है। 

पालम समृद्धि किस्म लगाने से 70—75 दिन के समयांतरल पर पक जाती हैं। साथ ही, पालम समृद्धि किस्म की औसतन उपज 72 क्विंटल प्रति एकड़ तक होती है। 

पंजाब ब्रोकली-1 

पंजाब ब्रोकली-1 किस्म 1996 में जारी की गई है। पंजाब ब्रोकली-1 के पत्ते कोमल, मुड़े हुऐ और गहरे हरे रंग के होते हैं।

ब्रोकली की इस किस्म का फल घना और आकर्षक होता है। यह किस्म 65 दिनों के समयांतराल में पककर तैयार हो जाती है। 

साथ ही, इसकी औसतन उपज की बात करें तो वह 70 क्विंटल प्रति एकड़ तक होती है। यह किस्म सलाद और खाना बनाने के लिए काफी ज्यादा अनुकूल होती है। 

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ब्रोकली की बिजाई और बीचोपचार 

ब्रोकली की बिजाई के लिए मध्य अगस्त से मध्य सितंबर तक का समय सबसे अच्छा रहता है। ब्रोकली की खेती के लिए कतार से कतार की दूरी 45X45 सें.मी. रखना चाहिए। 

बीज की गहराई 1—1.5 सें.मी तक होनी चाहिए। ब्रोकली की बिजाई कतारों में या छिडकाव विधि से भी की जा सकती है। 

वहीं, अगर बीज की मात्रा की बात करें तो एक एकड़ खेत में बिजाई के लिए 250 ग्राम बीजों का इस्तेमाल करें। 

अगर हम ब्रोकली के बीजोपचार की बात करें तो मिट्टी से पैदा होने वाली बीमारियों से बचाव के लिए बिजाई से पहले बीजों को गर्म पानी (58 डिगरी सेल्सियस) में 30 मिनट के लिए रखकर उपचार करें।

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ब्रोकली की खेती में खरपतवार नियंत्रण और सिंचाई 

ब्रोकली की फसल में खरपतवारों की रोकथाम करने के लिए रोपाई से पूर्व फलूक्लोरालिन (बसालिन) 1—2 लीटर को प्रति 600—700 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ भूमि में स्प्रे करें। 

साथ ही, ब्रोकली के रोपण से 30—40 दिनों के समयांतराल पर हाथ से गुड़ाई करें। नवीन पौधों की रोपाई से एक दिन पूर्व पैंडीमैथालिन 1 लीटर प्रति एकड़ पर छिड़काव करें। 

अगर हम ब्रोकली की फसल में सिंचाई की बात करें तो रोपण के शीघ्रोपरान्त प्रथम सिंचाई करें। मृदा एवं जलवायु या मौसम के अनुरूप ग्रीष्मकाल में 7—8 की समयावधि और सर्दियों में 10—15 दिनों के समयांतराल पर सिंचाई करनी अच्छी होती है।

ब्रोकली में कीट व बीमारियां और उनका इलाज  

निमाटोड 

निमाटोड की रोगिक अवस्था के समय पौधे के विकास में काफी गिरावट और पौधे का पीला पड़ना आदि शामिल है।

निमाटोड पर नियंत्रण पाने के लिए इसके प्रकोप की स्थिति में 5 किलो फोरेट या कार्बोफ्यूरॉन 10 किलो प्रति एकड़ के अनुरूप खेत में बुरक देनी चाहिए।

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चमकीली पीठ वाला पतंगा 

चमकीली पीठ वाला पतंगा का लार्वा पत्तों की ऊपरी और निचली सतह को पूरी तरह बर्बाद कर देता है। इसके फलस्वरूप यह पूरे पौधे को काफी ज्यादा क्षति पहुँचाता है। 

इसकी रोकथाम के लिए प्रकोप की अवस्था में स्पिनोसैड 25% फीसद एस सी 80 मि.ली. को प्रति 150 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

थ्रिप्स 

थ्रिप्स काफी छोटे कीट होते हैं, जो कि हल्के पीले से हल्के भूरे रंग के होते हैं। साथ ही, इसके लक्षण तबाह सिल्वर रंग के पत्ते हो जाते हैं। 

इस पर काबू पाने के लिए कृषक ध्यान रखें कि अगर चेपे और तेले का नुकसान ज्यादा हो तो इमीडाक्लोप्रिड 17.8 एस एल 60 मि.ली. को प्रति 150 लीटर पानी मिश्रित कर प्रति एकड़ पर छिड़काव अवश्यक करें।

सफेद फंगस की बीमारी  

सफेद फंगस बीमारी स्लैरोटीनिया स्लैरोटियोरम की वजह से होती है। इसके हमले से पत्तों और तनों पर अनियमित और सलेटी रंग के धब्बे आने शुरू हो जाते हैं। 

अगर कृषकों को अपने खेत में इस बीमारी के लक्षण दिखाई दें तो ऐसी स्थिति में कृषक मैटालैक्सिल+मैनकोजेब 2 ग्राम प्रति लीटर पानी का अवश्य छिड़काव करें और 10 दिनों के फासले पर समकुल 3 छिड़काव करें।

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