कोदो की खेती से संबंधित विस्तृत जानकारी

By: tractorchoice
Published on: 16-Jan-2025
कोदो की खेती से संबंधित विस्तृत जानकारी

कोदो की खेती क्या है ?

कोदो मिलेट्स के अंतर्गत आने वाली अनाज की एक फसल है। साथ ही, अनाज फसल के लिए की जाने जानी वाली कोदो की फसल का वानस्पतिक नाम पास्पलम स्कोर्बीकुलातम है। 

भारत में कोदो की खेती का इतिहास 3000 साल से भी ज्यादा पुराना है। इस वजह से इसको ऋषि अन्न के नाम से भी जाना जाता था। अपनी गुणवत्ता और स्वास्थ्य लाभों की वजह से यह काफी लोकप्रिय हो चुकी है। 

बीते कुछ सालों से इसकी मांग देश के साथ-साथ दुनियाभर में काफी ज्यादा बढ़ चुकी है। 

मिलेट्स के अनेकों स्वास्थ्य लाभों के चलते बड़े पैमाने पर लोग विभिन्न प्रकार के बाजरा को अपनी डाइट में शामिल कर रहे हैं। 

मिलेट्स के अंतर्गत बाजरा, कंगनी, रागी, चना, ज्वार और कोदो इत्यादि भी शम्मिलित हैं। कोदो अपने विभिन्न लाभों की वजह से स्वास्थ्य के लिए काफी फायदेमंद है। 

ट्रैक्टरचॉइस के इस लेख में हम आपको कोदो की खेती से जुड़ी जरूरी जानकारी देने वाले हैं। 

कोदो की खेती के लिए कैसी भूमि होनी चाहिए ?

  1. कोदो का उत्पादन बड़ी आसानी से हर तरह की जमीन में किया जा सकता है। ऐसी जमीन जहाँ कोई और धान्य फसल का उत्पादन नहीं किया जा सकता वहां भी ये फसलें बड़ी सहजता से उगाई जा सकती हैं। 
  2. कोदो की फसल का उत्पादन उतार-चढाव वाली, कम जल धारण क्षमता वाली, उथली सतह वाली भूमि पर अधिकांशतः किया जाता है। 
  3. हल्की जमीन में जिसमें बेहतर जल निकासी की व्यवस्था ना हो वह इसकी खेती के लिये काफी उपयुक्त होती है। बहुत अच्छा जल निकास होने पर लघु धान्य फसलें प्रायः हर तरह की जमीन में उगाई जा सकती है। 
  4. कोदो की खेती के लिए भूमि की तैयारी की बात करें तो गर्मी की जुताई करें और बारिश होने पर फिर से खेत की जुताई करें यानी हल के जरिए मृदा को अच्छी तरह से भुरभुरी कर दें।
  5. भारत के अंदर महाराष्ट्र, उत्तरी कर्नाटक, तमिलनाडु के कुछ हिस्सों, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, बिहार, गुजरात और उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में काफी मात्रा में उगाया जाता है।
  6. भारत के अलावा कोदो की खेती विदेशों में भी की जाती है। भारत के अतिरिक्त कोदो का उत्पादन फिलीपींस, वियतनाम, मलेशिया, थाईलैंड और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों में भी किया जाता है।

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कोदो की खेती के लिए सही समय 

  1. शुगर फ्री चावल के तौर पर भी पहचानी जाने वाली कोदो की खेती के लिए बुवाई का सही समय 15 जून से 15 जुलाई और बारिश के मौसम के बाद का होता है। 

कोदो की खेती के लिए उत्तम किस्में

कोदो की प्रमुख और बेहतरीन उपज देने वाली किस्में 

  1. कोदो की फसल की महत्वपूर्ण किस्में जेके-13, जेके-48, जीके-2, वम्बन, आईपीएस 147-1, जेके-62, जेके-76, जीपीयूके-3, खेरापा आदि किस्में उपलब्ध हैं। इनके आलावा कुछ अन्य किस्में भी मौजूद हैं जैसे - जवाहर कोदों 137, जवाहर कोदों 155, आर. के. 390-25 इत्यादि। 

कोदो की बुवाई 

  1. कोदो की बुवाई के सही समय की बात करें तो कृषक बंधुओं 15 जून से 15 जुलाई के बीच का समय इसकी बुवाई के लिए सबसे अच्छा होता है। 
  2. कोदो के बीज की गहराई 3-4 सेंटीमीटर और पौधों से पौधों के बीच का फासला 8-10 सेंटीमीटर रखना चाहिए। 

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-बीज दर 

कोदो की छिड़काव विधि से बुवाई करने के लिए 10-15 कि.ग्रा. हेक्टेयर बीज दर सबसे अच्छी होती है। 

कोदो की सिंचाई 

  1. कोदो की खेती में सिंचाई का काम कल्ले निकलने और फूल आने पर ही किया जाता है। 
  2. कोदो की पहली सिंचाई बुवाई के 20-25 दिन बाद करनी चाहिए। 
  3. बारिश ना होने की स्थिति में 12-15 दिन के समयांतराल पर सिंचाई अवश्य करनी चाहिए। इससे फसलीय विकास में काफी सहयोग मिलता है।

कोदो की फसल में खरपतवार

कृषक साथियों, खरपतवार पर काबू पाने के लिए हर 20-25 दिन के समयांतराल पर निराई-गुड़ाई करते रहना चाहिए।

कोदो की खेती में जब पौधों का विकास शुरू होता है, तब खरपतवारों पर नियंत्रण करना बेहद जरूरी होता है। खरपतवार ज्यादा होने से फसल से मिलने वाली उपज भी काफी कम हो जाती है। 

कोदो में लगने वाले प्रमुख रोग कौन-कौन से हैं ?

किसानों के सामने सबसे बड़ी चुनौती रोग और कीट होते हैं। कोदो की फसल में विशेष प्रकार के रोग और कीट लग जाते हैं, जो फसलीय उत्पादन और गुणवत्ता को काफी ज्यादा प्रभावित कर सकते हैं। 

फसल में अगर समय रहते किसान इन रोगों और कीटों पर काबू नहीं कर पाए तो फसल की उपज तो कम होगी ही साथ ही उनकी आमदनी में भी भारी कमी आ जाएगी।

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ब्लास्ट रोग

ब्लास्ट रोग कई फसलों की तरह कोदो की फसल को भी काफी क्षति पहुँचाता है। इस रोग के लगने पर पत्तियों, बाली और तनों पर गहरे धब्बे जो अंतिम में सफेद रंग के हो जाते हैं। 

याद रहे फसल में इस रोक की रोकथाम करने के लिए केवल प्रमाणित बीजों का ही इस्तेमाल बेहतर होगा। वर्ना फसल पर उल्टा असर पड़ सकता है। 

विशेषज्ञों की सलाह के अनुसार बेहतर फसल चक्र अपनाएं। साथ ही, रोग प्रतिरोधी किस्मों की ही खेती करें।

रस्ट 

किसान साथियों, रस्ट रोग की सबसे पहले इस बात से पहचान की जा सकती है, कि पत्तियों पर छोटे, नारंगी या भूरे रंग के धब्बे आने शुरू हो जाते हैं। 

इसके नियंत्रण के लिए रोग प्रतिरोधी किस्मों का अवश्य चुनाव करें और मेटालॅक्सिल 4% + मँकोजेब 64% का इस्तेमाल करें।

जड़ सड़न व तना सड़न 

जड़ सड़न व तना सड़न रोग की वजह से पौधों के तने और जड़ें काफी हद तक सड़ जाती हैं, जिससे पौधे काफी कमजोर होकर नीचे गिरने लग जाते हैं। 

इसकी रोकथाम के लिए जल निकासी की सुविधा का अच्छा होना भी जरूरी है। उत्तम तरह के बीजों का इस्तेमाल करें।

वहीं, रोग लगने पर आप थायोफेनेट मिथाइल 70% प्रतिशत डब्ल्यू.पी.की निर्धारित मात्रा का उपयोग कर सकते हैं। 

तना बेधक

तना बेधक रोग की वजह से तनों में छेद हो जाते हैं, जो कि पौधे को नीचे भी गिरा सकते हैं। इसका नतीजा यह होगा कि उपज में काफी गिरावट देखने को मिलेगी। 

तना बेधक के नियंत्रण के लिए फसल अवशेषों को समाप्त जरूर करदें व जैविक कीटनाशक जैसे बैसिलस थुरिंजियेंसिस का अवश्य इस्तेमाल करें। 

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पत्ता मरोड़ 

पत्ता मरोड़ रोग की सबसे बड़ी निशानी यह है, कि इस रोग की स्थिति में पत्तियाँ मरोड़ कर रोल की तरह हो जाती हैं। इससे प्रकाश संश्लेषण पर भी काफी हद तक बाधित होता है। 

पत्ता मरोड़ रोग के नियंत्रण के लिए रोग की चपेट में आई हुई पत्तियों को बिल्कुल अलग कर दें और नीम के तेल का अवश्य छिड़काव करें। 

एफिड 

एफिड के संक्रमण से पत्तियों और तनों पर छोटे, मुलायम कीट जो रस चूसते हैं, जिससे पत्तियों का रंग पीला पड़ने लग जाता है। एफिड पर काबू पाने के लिए संक्रमित भाग को पानी से धोकर उसके ऊपर नीम के तेल का छिड़काव करना सही रहता है।

कोदो की फसल की कटाई

  1. कोदो की फसल की कटाई इसके पक जाने पर होती है। 
  2. कोदो की फसल को कटाई के लिए तैयार होने में 80 से 140 दिन का समय लगता है। 
  3. मानव संसाधन या आधुनिक कृषि यंत्रों की मदद से कोदो की फसल की कटाई कर सकते हैं।  

कोदो की फसल का मंडी में भाव 

  1. कोदो की फसल का अलग-अलग राज्यों में अलग अलग हो सकता है। 
  2. किसान अपनी नजदीक की मंडी में सही मूल्य का पता लगाकर इसको बेच सकते हैं। 
  3. आमतौर पर कोदो का मूल्य 1900 रुपए प्रति क्विंटल से 3200 रुपए प्रति क्विंटल हो सकता है।   

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