जैतून की खेती से जुड़ी सम्पूर्ण जानकारी

By: tractorchoice
Published on: 27-May-2025
जैतून की खेती से जुड़ी सम्पूर्ण जानकारी

किसान साथियों, आज हम बात करने वाले हैं, जैतून की खेती के बारे में जिसको ‘ओलिव’ के नाम से भी जाना जाता है। जैतून एक ऐसा फल है, जिसका उपयोग खाद्य और औषधी बनाने में काफी लंबे समय से किया जा रहा है। 

आज के समय में जैतून की खेती ना केवल आर्थिक दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण है, बल्कि यह पर्यावरण के लिए भी एक वरदान के समान है।

जैतून की खेती के लिए भूमि तैयारी 

जैतून की खेती के लिए सबसे पहले खेत को अच्छी तरह से तैयार करना ज़रूरी है। इसके लिए मिट्टी की गहरी जुताई करें ताकि जैतून के पौधों की जड़ें अच्छी तरह से विकसित हो सकें। 

जैतून की पौध का चयन करते समय ध्यान रखें कि वो किस्म स्थानीय जलवायु के अनुकूल हो। पौधों को 5-7 मीटर की दूरी पर लगाएं ताकि उन्हें विकास करने के लिए पर्याप्त जगह मिल सके। चलिए जानते हैं जैतून की खेती से जुडी कुछ जरूरी बातों के बारे में। 

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जैतून की खेती के लिए मिट्टी व जलवायु कैसी होनी चाहिए ?

जैतून की खेती के लिए अच्छी जल निकासी वाली दोमट मिट्टी सबसे अनुकूल मानी जाती है। पथरीली और बलुई मिट्टी भी अनुकूल होती है बशर्ते उसमें जल निकासी की उचित व्यवस्था हो। जैतून के पेड़ के लिए शुष्क व अर्ध-शुष्क जलवायु अच्छी मानी जाती है।

अगर हम तापमान की बात करें तो गर्मियों में तापमान 20-30 डिग्री सेल्सियस और सर्दियों में 5-15 डिग्री सेल्सियस के बीच होना चाहिए। ध्यान रहे कि अधिक ठंड या जलभराव से इनका बचाव ज़रूरी है, क्योंकि ये पौधे की बढ़वार को नुकसान पहुँचा सकते हैं।

जैतून की खेती का सही समय

जैतून की खेती के लिए अक्टूबर से दिसंबर के बीच का समय सबसे अच्छा होता है। इस समय मिट्टी में नमी की पर्याप्त मात्रा होती है, जो पौधों की प्रारंभिक वृद्धि के लिए काफी महत्वपूर्ण है। 

जैतून की फसल को फल देने के लिए तैयार होने में सामान्यतः 5 साल का समय लग जाता है। हालांकि, ये किस्मों के चयन पर भी निर्भर करता है। 

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जैतून की लोकप्रिय किस्में 

जैतून की विभिन्न प्रकार की किस्में हैं, जिनमें तेल उत्पादन, आकार, स्वाद और इस्तेमाल के लिए अलग-अलग होते हैं। जैतून की प्रमुख लोकप्रिय किस्मों में पिकुअल (Picual), अर्बेकिना (Arbequina), लेसिनो (Leccino), फ्रैंटोइओ (Frantoio), कोराटिना (Coratina), मंज़नीला (Manzanilla), गोर्डल सेविलाना (Gordal Sevillana), कोरोनेकी (Koroneiki), और कई अन्य शामिल हैं। 

जैतून के लिए सिंचाई व उर्वरक

जैतून के पौधों को शुरुआती वर्षों में नियमित सिंचाई की आवश्यकता होती है। गर्मियों में हर 10-15 दिन में सिंचाई करें और सर्दियों में 20-25 दिन में एक बार। पौधों की बढ़ती उम्र के साथ सिंचाई कम की जा सकती है।

अगर हम जैतून के खेत में उर्वरक की बात करें तो इन पौधों में जैविक उर्वरकों का प्रयोग करना सबसे अच्छा है। इसके लिए प्रति पौधा सालाना 10-15 किलोग्राम गोबर की खाद और 100-150 ग्राम नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश के मिश्रण का प्रयोग किया जा सकता है। 



प्रश्न: भारत के अंदर बड़े पैमाने पर जैतून की खेती कहाँ होती है ?

उत्तर: भारत के अंदर जैसलमेर, चूरु, हनुमानगढ़, गंगानगर और बीकानेर में जैतून की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है।

प्रश्न: जैतून के नए पौधे कैसे प्राप्त किए जाते हैं ?

उत्तर: जैतून के नए पौधे कलम द्वारा प्राप्त किए जाते हैं। 

प्रश्न: जैतून के प्रमुख रोग और कीट कौन-कौन से हैं ?

उत्तर: जैतून में पाउडरी मिल्ड्यू व फल मक्खी का प्रकोप अधिकतर देखा जाता है।

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