Papaya Farming - पपीते की खेती कैसे की जाती है

By: tractorchoice
Published on: 01-Jul-2024
Papaya Farming -  पपीते की खेती कैसे की जाती है

विश्व भर के उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पपीता एक महत्वपूर्ण फल है। केला के बाद सबसे अधिक उत्पादन देने वाली औषधीय फलदार पौधा है। 

सन् 1575 में, डच यात्री लिन्सकाटेन ने पपीता के पौधे को वेस्टइंडीज से मलेशिया लाया और फिर वहां से भारत लाया। बड़वानी में भी लगभग 958 हेक्टर में पपीतें व्यावसायिक रूप से खेती जाती हैं। 

बड़वानी जिले में लाल और पीली किस्मे लोकप्रिय हैं। पपेन पपीते के फलों से बनाया जाता है। इसका उपयोग प्रसंस्कृत उत्पाद में किया जाता है।   

पपीता की फसल उत्पादन के लिए जलवायु  

पपीता एक उष्णकटिबंधीय जलवायु वाली फसल है, इसकी खेती सफलतापूर्वक 10 से 26 डिग्री सेल्सियस तक हो सकती है और पाले की कोई संभावना नहीं होती है। 

पपीता के बीजों का अंकुरण 35 डिग्री सेल्सियस पर होना चाहिए। ठंड में 12 डिग्री सेल्सियस से कम रात्रि तापमान पौधों की वृद्धि और फलोत्पादन पर बुरा प्रभाव डालता है। पपीता की खेती के लिए 6.5-7.5 pH मान वाली हल्की दोमट या दोमट मिट्टी चाहिए, जिसमें अच्छा जलनिकास है।  

पपीते की किस्मों का चुनाव

पपीते की किस्मों का चुनाव खेती के उद्देश्य के अनुसार किया जाना चाहिए जैसे कि औद्योगिक रूप से महत्व की किस्में जिनके कच्चे फलों से पपेन निकाला जाता है, पपेन किस्में कहलाती हैं इस वर्ग में महत्वपूर्ण किस्में सी. ओ- 2 ए सी. ओ- 5 एवं सी. ओ- 7 है।

टेबिल वैरायटी, जिनको पकी अवस्था में काटकर खाया जाता है, इसके साथ दूसरा महत्वपूर्ण वर्ग है। इस वर्ग को फिर से दो भागों में विभाजित किया गया है। 

पारंपरिक पपीते की प्रजातियां निम्नलिखित हैं: बड़वानी लाल, पीला, वाशिंगटन, मधुबिन्दु, हनीड्यू, कुर्ग हनीड्यू और 1 और 3 पारंपरिक पपीते की किस्में हैं। 

नवीन संकर किस्में: उन्नत गाइनोडायोसियस/उभयलिंगी किस्में: पूसा नन्हा, पूसा डेलिशियस, सीओ-7 पूसा मैजेस्टी, सूर्या आदि।       

पपीते की पौध तैयार करने की तकनीक और रोपाई 

1 हेक्टेयर में पपीते के लिए आवश्यक पौधों की मात्रा बनाने के लिए 500 ग्राम परंपरागत किस्मों का बीज और 300 ग्राम उन्नत किस्मों का बीज की आवश्यकता होती है। 

क्यारियों और पालीथीन की थैलियों में पपीते की पौध तैयार की जा सकती है। पौध तैयार करने के लिए क्यारियों की लंबाई 3 मीटर, चैड़ाई 1 मीटर और ऊंचाई 20 सेमी होनी चाहिए। 

प्लास्टिक की थैलियों में पौध तैयार करने के लिए, 200 गेज मोटी, 20 गुना 15 सेमी आकर की थैलियों में 1:1:1:1 अनुपात में वर्मी कंपोस्ट, रेत, गोबर खाद और मिट्टी का मिश्रण भरें. प्रत्येक थैली में 1 या 2 बीज बोंए।

पौध रोपण पूर्व खेत की तैयारी मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई कर 2-3 बार कल्टीवेटर या हैरो से जुताई करें। तथा समतल कर लें । 

पूर्ण रूप से तैयार खेत में 45*45*45 सेमी आकार के गढडे 2x2 मीटर (पंक्ति - पंक्ति एवं पौध से पौध )की दूरी पर तैयार करें। 

अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए 200 ग्राम नाइट्रोजन, 250 ग्राम फास्फोरस और 250 ग्राम पोटाश प्रति पौधा प्रतिवर्ष 3-4 बराबर भागों में बांटकर दें। 

सिंचाई और खरपतवार नियंत्रण

पपीता के पौधो की अच्छी वृद्धि तथा अच्छी गुणवत्तायुक्त फलोत्पादन हेतु मिटटी में सही नमी स्तर बनाए रखना बहुत जरूरी होता है। नमी की अत्याधिक कमी का पौधों की वृद्धि फलों की उपज पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। 

सामान्यतः शरद ऋतु में 10-15 दिन के अंतर से तथा ग्रीष्म ऋतु में 5-7 दिनों के अंतराल पर आवश्यकतानुसार सिंचाई करें। सिंचाई की आधुनिक विधि ड्रिप तकनीकी अपनाऐ।

पपीते के फलों से पपेन कैसे निकालते है? 

पपीते के कच्चे फलों से पेपन निकाला जाता है | 90 से 100 दिन तक पपेन के लिए कच्चे फलों का चुनाव करें | चुने हुए फलों से सुबह 3 मिमी गहराई के 3-4 चीरे गोलाई आकार में गोलाई करें। इसके पूर्व पौधों पर फलों से दूध निकालने के लिए प्लास्टिक के बर्तन तैयार रखें |

फलों पर पहली बार चीरा लगाने के 3-4 दिनों बाद पपेन एकत्रित करें।

  • पपेन (दूध) को प्राप्त करने के बाद उसे 0.5 प्रतिशत पोटेशियम मेन्टाबाई सल्फेट परिरक्षक के रूप में मिलाकर 3-4 दिन तक सुरक्षित रखें. पपेन को अच्छी तरह सुखाकर उसे प्रसंस्करण केंद्र में भेजें। 
  • सीओ-2 और सीओ-5 किस्मों के पौधों से 100-150 ग्राम पपेन प्रति वर्ष मिलता है, जो पपीते की पपेन के लिए उपयुक्त हैं।
  • महाराष्ट्र के जलगांव और येवला (नासिक) में कच्चे पपेन को सुखाकर उसे प्रसंस्करण के लिए उपकरण भेजे जाते हैं।
  • भारत में पपीता प्यूरी का एक बड़ा निर्यातक है. कच्चे फलों से पपेन निकालकर इससे अन्य प्रसंस्कृत उत्पाद जैसे मुरब्बा, टूटी फ्रूटी और चीरा लगे पके फलों से जेली मुरब्बा रास या गुदा बनाया जा सकता है।

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