अमरूद की खेती को लाभकारी बनाने में मददगार जानकारी

By: tractorchoice
Published on: 07-Jan-2025
अमरूद की खेती को लाभकारी बनाने में मददगार जानकारी

भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहां विभिन्न प्रकार की फसलें और फलों की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। इन्हीं में से एक अमरुद है। 

भारतीय लोगों को अमरूद का सेवन करना बहुत अच्छा लगता है, इसलिए इसकी बाजार में काफी मांग बनी रहती है। भारत में अमरूद सामान्य तौर पर उगाई जाने वाली व्यापारिक फसल है। 

अमरूद का उत्पादन मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय और उप- उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में किया जाता है। 

अगर हम बात करें इसके अंदर विघमान पोषक तत्वों की तो इसमें विटामिन सी और पैक्टिन के साथ-साथ कैल्शियम और फासफोरस भी काफी ज्यादा मात्रा में पाया जाता है। 

यह भारत की आम, केला और नींबू प्रजाति के बूटों के उपरांत उगाई जाने वाली चौथे स्थान की फसल है। संपूर्ण भारतवर्ष में इसका उत्पादन बड़े स्तर पर किया जाता है। 

बिहार, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, उड़ीसा, पश्चिमी बंगाल, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडू के अतिरिक्त इसकी खेती पंजाब और हरियाणा में भी की जाती है। 

पंजाब में 8022 हैक्टेयर के क्षेत्रफल पर अमरूद की खेती की जाती है और औसतन उपज 160463 मैट्रिक टन तक होती है।

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अमरूद की खेती के लिए उपयुक्त मृदा 

अमरूद एक सख्त किस्म की फसल है और इसके उत्पादन के लिए हर प्रकार की मृदा उपयुक्त होती है, जिसमें हल्की से लेकर भारी और कम निकास वाली मृदा भी शम्मिलित है। 

अमरूद की औसतन उपज 6.5 से 7.5 पी एच वाली मृदा में भी की जा सकती है। अमरूद से बेहतरीन उत्पादन हांसिल करने के लिए इसको गहरे तल, अच्छे निकास वाली रेतीली चिकनी मिट्टी से लेकर चिकनी मृदा में बोना चाहिए।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

अर्क अमूल्य 

अमरूद की इस किस्म का बूटा छोटा और गोल आकार का होता है। इसके पत्ते काफी घने होते हैं। इसके फल बड़े आकार के, नर्म, गोल और सफेद गुद्दे वाले होते हैं। 

इसमें टी एस एस की मात्रा 9.3 से 10.1 प्रतिशत तक होती है। इसका एक बूटा करीब 144 किलोग्राम तक फल प्रदान करता है।

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सरदार

अमरूद की सरदार किस्म को एल 49 के नाम से भी जाना जाता है। यह छोटे कद वाली किस्म है, जिसकी टहनियां काफी ज्यादा घनी और फैली हुई होती हैं। 

इसका फल बड़े आकार और बाहर से खुरदुरा जैसा होता है। इसका गुद्दा क्रीम रंग का होता है। खाने में यह अमरूद नर्म, रसीला और स्वादिष्ट होता है। 

इसमें टी एस एस की मात्रा 10 से 12 प्रतिशत तक होती है। इसके प्रति बूटा की उत्पादकता 130 से 155 किलोग्राम तक होती है।

पंजाब सफेदा 

अमरूद की पंजाब सफेदा किस्म के फल का गुद्दा क्रीमी और सफेद रंग का होता है। फल में शुगर की मात्रा 13.4% प्रतिशत तक होती है और खट्टेपन की मात्रा 0.62% प्रतिशत तक होती है।

पंजाब किरन 

पंजाब किरन किस्म के फल का गुद्दा गुलाबी रंग का होता है। फल में शूगर की मात्रा 12.3 प्रतिशत होती है और खट्टेपन की मात्रा 0.44 प्रतिशत होती है। इसके बीज छोटे और नर्म होते हैं।

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स्वेता

अमरूद की स्वेता किस्म के फल का गुद्दा क्रीमी सफेद रंग का होता है। फल में सुक्रॉस की मात्रा 10.5—11.0 प्रतिशत होती है। इसकी औसतन पैदावार 151 किलो प्रति वृक्ष तक होती है।

पंजाब पिंक 

अमरूद की इस किस्म के फल दरमियाने से बड़े आकार और आकर्षक रंग के होते हैं। ग्रीष्मकाल में इनका रंग सुनहरी पीला हो जाता है। 

इसका गुद्दा लाल रंग का होता है, जिसमें से मोहक सुगंध आती है। इसमें टी एस एस की मात्रा 10.5 से 12 प्रतिशत तक होती है। इसके एक बूटे की पैदावार लगभग 155 किलो तक होता है।

इलाहाबाद सफेदा

अमरूद की यह इलाहाबाद सफेदा किस्म दरमियाने कद की होती है, जिसका बूटा गोलाकार होता है। इसकी टहनियां काफी ज्यादा फैली हुई होती हैं। 

इसका फल नर्म और गोल आकार का होता है। इसके गुद्दे का रंग सफेद होता है, जिसमें से आकर्षित सुगंध का अनुभव होता है। इसमें टी एस एस की मात्रा 10 से 12 प्रतिशत तक होती है।

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अमरूद की अन्य प्रसिद्ध किस्में  

इनके अलावा और भी अमरूद की बहुत सारी किस्में पाई जाती हैं। जैसे कि सारी निगिस्की इसकी औसतन उपज 80 किलो प्रति वृक्ष होती है। 

पंजाब सॉफ्ट इसकी औसतन उपज 85 किलो प्रति वृक्ष होती है। इलाहाबाद सुर्खा यह बिना बीजों वाली किस्म है। इसके फल बड़े और अंदर से गुलाबी रंग के होते हैं। 

एप्पल गुआवा इस किस्म के फल दरमियाने आकार के गुलाबी रंग के होते हैं। फल स्वाद में मीठे होते हैं और इन्हें लंबे समय के लिए रखा जा सकता है।

चित्तीदार यह उत्तर प्रदेश की प्रसिद्ध किस्म है। इसके फल अलाहबाद सुफेदा किस्म जैसे होते हैं। इसके इलावा इस किस्म के फलों के ऊपर लाल रंग के धब्बे होते हैं। इसमें टी एस एस की मात्रा अलाहबाद सुफेदा और एल 49 किस्म से ज्यादा होती है। 

अमरूद की खेती के लिए भूमि की तैयारी

किसान भाई खेत की दो बार तिरछी जोताई करें और फिर एकसार कर दें। खेत को इस प्रकार तैयार करें कि उसमें पानी ना खड़ा रहे। 

फरवरी-मार्च या अगस्त-सितंबर का महीना अमरूद के पौधे लगाने के लिए सही माना जाता है। पौधे लगाने के लिए 6x5 मीटर का फासला रखें। 

दि पौधे वर्गाकार ढंग से लगाएं हैं तो पौधों का फासला 7 मीटर रखें। 132 पौधे प्रति एकड़ लगाए जाते हैं। बीज की गहराई की बात करें तो जड़ों को 25 सैं.मी. की गहराई पर बोना काफी अच्छा होता है।

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अमरूद की बिजाई का तरीका 

  • सीधी बिजाई करके
  • खेत में रोपण करके
  • कलमें लगाकर
  • पनीरी लगाकर

अमरूद की कटाई और छंटाई

पौधों की मजबूती और सही वृद्धि के लिए कटाई और छंटाई की जरूरत होती है। जितना मजबूत बूटे का तना होगा, उतनी ही पैदावार अधिक अच्छी गुणवत्ता भरपूर होगी। 

बूटे की उपजाई क्षमता बनाए रखने के लिए फलों की पहली तुड़ाई के बाद बूटे की हल्की छंटाई करनी जरूरी है। जब कि सूख चुकी और बीमारी आदि से प्रभावित टहनियों की कटाई लगातार करनी चाहिए। 

बूटे की कटाई हमेशा नीचे से ऊपर की तरफ करनी चाहिए। अमरूद के बूटे को फूल, टहनियां और तने की स्थिति के अनुरूप वर्ष में एक बार पौधे की हल्की छंटाई करने के समय टहनियों के ऊपर वाले हिस्से को 10 सैं.मी. तक काट देना चाहिए। इस तरह कटाई के पश्चात नईं टहनियां अकुंरन में सहायता मिलती है।

अमरूद की फसल में खरपतवार नियंत्रण

अमरूद के बूटे के सही विकास और अच्छी पैदावार के लिए नदीनों की रोकथाम जरूरी है। नदीनों की वृद्धि की जांच के लिए मार्च, जुलाई और सितंबर महीने में ग्रामोक्सोन 6 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में डालकर स्प्रे करें। 

नदीनों के अंकुरण के बाद गलाईफोसेट 1.6 लीटर को 200 लीटर पानी में मिलाकर (नदीनों को फूल पड़ने और उनकी उंचाई 15 से 20 सैं.मी. तक हो जाने से पहले) प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करें।

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अमरूद की फसल में सिंचाई प्रबंधन 

कृषक अमरूद की फसल में पहली सिंचाई पौधे लगाने के तुरंत बाद और दूसरी सिंचाई तीसरे दिन करें। इसके बाद मौसम और मिट्टी की किस्म के हिसाब से सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। 

अच्छे और तंदरूस्त बागों में सिंचाई की अधिक जरूरत नहीं पड़ती। नए लगाए पौधों को गर्मियों में एक सप्ताह बाद और सर्दियों के माह में 2 से 3 बार सिंचाई की आवश्यकता होती है। 

पौधे को फूल लगने के वक्त अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती। क्योंकि, अधिक सिंचाई से फूल गिरने का संकट काफी बढ़ जाता है।

अमरूद की फसल में हानिकारक कीट और रोकथाम

फल की मक्खी  

यह अमरूद का गंभीर कीट है। मादा मक्खी नए फलों के अंदर अंडे देती है। उसके बाद नए कीट फल के गुद्दे को खाते हैं जिससे फल गलना शुरू हो जाता है और गिर जाता है।

यदि बाग में फल की मक्खी का हमला पहले भी होता है तो बारिश के मौसम में फसल को ना बोयें। समय पर तुड़ाई करें। तुड़ाई में देरी ना करें। प्रभावित शाखाओं और फलों को खेत में से बाहर निकालें और नष्ट कर दें। 

फैनवेलरेट 80 मि.ली को 150 लीटर पानी में मिलाकर फल पकने पर सप्ताह के अंतराल पर स्प्रे करें। फैनवेलरेट की स्प्रे के बाद तीसरे दिन फल की तुड़ाई करें।

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मिली बग 

ये पौधे के विभिन्न भागों में से रस चूसते हैं जिससे पौधा कमज़ोर हो जाता है। यदि रस चूसने वाले कीटों का हमला दिखे तो क्लोरपाइरीफॉस 50 ई सी 300 मि.ली. को 100 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।

अमरूद की शाख का कीट 

यह नर्सरी का काफी खतरनाक कीट है, इसकी वजह से प्रभावित टहनी सूख जाती है। अगर इसका आक्रमण दिखाई दे, तो क्लोरपाइरीफॉस 500 मि.ली. या क्विनलफॉस 400 मि.ली. को 100 लीटर पानी में मिश्रित कर छिड़काव करें।

चेपा

चेपा अमरूद में लगने वाला खतरनाक और सामान्य तौर पर पाए जाने वाला कीट है। प्रौढ़ और छोटे कीट पौधे में से रस चूसकर उसको कमजोर कर देते हैं। 

गंभीर हमले की वजह से पत्ते मुड़ जाते हैं, जिससे उनका आकार बिगड़ जाता है। ये शहद की बूंद जैसा पदार्थ छोड़ते हैं, जिससे प्रभावित पत्ते पर काले रंग की फंगस विकसित हो जाती है। 

अगर इसका आक्रमण नजर आए तो डाइमैथोएट 20 मि.ली. या मिथाइल डेमेटान 20 मि.ली. को प्रति 10 लीटर पानी में मिलाकर अवश्य छिड़काव करें।

अमरूद की खेती में लगने वाली बीमारियां व उनका नियंत्रण

अमरूद की खेती में सूखा बीमारी   

यह अमरूद के पौधे को लगने वाली खतरनाक बीमारी है। इसका हमला होने पर बूटे के पत्ते पीले पड़ने और मुरझाने शुरू हो जाते हैं। हमला ज्यादा होने पर पत्ते गिर भी जाते हैं।

इसकी रोकथाम के लिए खेत में पानी इकट्ठा ना होने दें। प्रभावित पौधों को निकालें और दूर ले जाकर नष्ट कर दें। कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 25 ग्राम या कार्बेनडाज़िम 20 ग्राम को 10 लीटर पानी में मिलाकर मिट्टी के नज़दीक छिड़कें।

अमरूद की खेती में एंथ्राक्नोस अथवा मुरझाना

अमरूद की खेती के दौरान टहनियों पर गहरे भूरे या काले रंग के धब्बे पड़ जाते हैं। फलों पर छोटे, गहरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं। संक्रमण की वजह से 2 से 3 दिनों में फल गलना प्रारंभ हो जाते हैं।

अमरूद में लगने वाली बीमारियों से कैसे बचाव करें ?

अमरूद की खेती के दौरान भूमि को साफ-स्वच्छ रखें, प्रभावित पौधे के हिस्सों और फलों को नष्ट कर दें। खेत में जल भराव की स्थिति उत्पन्न ना होने दें। 

छंटाई के उपरांत कप्तान 300 ग्राम को 100 लीटर पानी में मिश्रित कर छिड़काव करें। फल बनने के पश्चात कप्तान का दोबारा छिड़काव करें और 10-15 दिनों के समयांतराल पर फल पकने तक छिड़काव करें। 

अगर इसका संक्रमण खेत में दिखाई दे तो कॉपर ऑक्सीक्लोराईड 30 ग्राम को 10 लीटर पानी में मिलाकर प्रभावित वृक्ष पर छिड़काव कर दें।

अमरूद की फसल की कटाई कब करें ?

बिजाई के 2-3 वर्ष उपरांत अमरूद के बूटों पर फल लगने शुरू हो जाते हैं। फलों को पूर्णतय पकने के बाद इनकी तुड़ाई करनी चाहिए। 

पूरी तरह पकने के बाद फलों का रंग हरे से पीला होना प्रारंभ हो जाता है। फलों की तुड़ाई उचित समय पर कर लेनी चाहिए। 

फलों को ज्यादा पकने नहीं देना चाहिए, क्योंकि ज्यादा पकने से फलों के स्वाद और गुणवत्ता में नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

अमरूद की कटाई के बाद क्या करें ?

किसान भाई अमरूद के फलों की तुड़ाई करें। इसके बाद फलों को अच्छे तरीके से साफ करें, उन्हें आकार के आधार पर बांटे और पैक कर लें। अमरूद शीघ्रता से खराब होने वाला फल है। 

इसलिए इसकी तुड़ाई के शीघ्र बाद बाजार में बेचने के लिए भेज देना चाहिए। इसे पैक करने के लिए कार्टून फाइबर बॉक्स या भिन्न-भिन्न आकार के गत्ते के डिब्बे या बांस की टोकरियों का इस्तेमाल करना चाहिए।

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