सूरन की खेती संबंधित विस्तृत जानकारी

By: tractorchoice
Published on: 06-Jan-2025
सूरन की खेती संबंधित विस्तृत जानकारी

सूरन एक प्रकार की औषधीय फसल होती है। लेकिन, इसका इस्तेमाल हमारे घरों में सब्जियों के तौर पर किया जाता है।

सूरन का वैज्ञानिक नाम अमोर्फोफैलुस कम्पानुलातुस होता है, जिसको भारतीय सूरन ओल और जिमीकंद के नाम से भी जानते हैं। 

सूरन काफी ज्यादा गर्म होती है। इसका निरंतर सेवन करने से खुजली की समस्या पैदा होने का खतरा रहता है।

लेकिन, इस समय सूरन की कुछ ऐसी प्रजातियां भी उपलब्ध है, जिन्हें आप निरंतर भी खाएंगे तो खुजली की समस्या पैदा नहीं होगी। 

सूरन के फलों का विकास भूमि के अंदर ही होता है। सूरन में औषधीय गुण होने की वजह से इसको सभी सब्जियों से अलग स्थान पर रखा जाता है।

प्राचीन काल में सबसे पहले सूरन की खेती केवल व्यक्तिगत तौर पर ही की जाती थी। परंतु, अब भारत देश में कई किसान ऐसे हैं जो सूरन की खेती करके लाखों कमा रहे हैं। 

सूरन में पोषक तत्व के साथ-साथ औषधीय गुण भी पाया जाता है, जिस वजह से इसका इस्तेमाल आयुर्वेदिक औषधियां तैयार करने में किया जाता है। 

सूरन स्वास्थ्य रोगों को दूर करने में लाभकारी 

कार्बोहाइड्रेट कैल्शियम फास्फोरस खनिज जैसे विभिन्न प्रकार के पोषक तत्व सूरन के फलों में उपलब्ध होते हैं। 

सूरन का उपयोग करने से बवासीर, पेचिश, खूनी बवासीर, दमा, फेफड़ों की सूजन, रक्त विकार जैसी विभिन्न प्रकार की बीमारियां जड़ से समाप्त हो जाती है। सूरन की खेती छायादार स्थान पर भी सफलतापूर्वक की जा सकती है।

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सूरन की खेती के लिए उपयुक्त मृदा और जलवायु का चयन

अब तक भारत के किसान सूरन की खेती करने के लिए कम महत्व वाली भूमि का इस्तेमाल कर रहे थे। सूरन की खेती करने के लिए उत्तम जल निकासी वाली बलुई दोमट मृदा का चयन करना चाहिए। 

इस प्रकार की मृदा में सूरन की खेती करने से इसके पौधे बेहतर ढ़ंग से विकसित हो पाते हैं। साथ ही, पैदावार भी काफी अच्छी होती है। 

लेकिन, अगर आप इसकी खेती जल भराव वाली जमीन पर करते हैं तो इसके पौधे विकसित नहीं हो पाते हैं और उपज भी कम होती है। 

कन्द वाली फसलों की पैदावार करने के लिए खेत की जुताई करने के उपरांत बार-बार पता लगाना चाहिए, जिससे मृदा पूर्ण रूप से भुरभुरी हो जाए।

इसके लिए खेत की जुताई करके कुछ दिनों तक ऐसे ही खुला छोड़ दे खेत की मिट्टी में अच्छी तरह से धूप लग जाए। सूरन की खेती के लिए 5 से 7 पीएच मान वाली मिट्टी की आवश्यकता होती है। 

क्योंकि, इसकी बुवाई के बाद बीजों के अंकुरण के लिए अधिक तापमान की आवश्यकता होती है। यही वजह है, कि सूरन की बुवाई अप्रैल से लेकर जून के महीने तक ही की जाती है। वहीं, पौधों के विकास के लिए अच्छी बारिश का होना ज्यादा जरूरी है।

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सूरन की उन्नत किस्में निम्नलिखित हैं 

अगर आप भी सूरन की खेती करना चाहते हैं, तो इसकी विभिन्न प्रकार की उन्नत किस्में उपलब्ध हैं, जिन्हें उनकी गुणवत्ता पैदावार और उगने के मौसम के आधार पर तैयार किया गया है। 

जैसे कि गजेंद्र, एम-15, संतरागाछी, संतरा गाची जैसी उन्नत किस्म उपलब्ध है। अपने क्षेत्र के जलवायु के आधार पर ही आप सूरन की किस्मों का विचारपूर्वक चयन करें।

1. गजेंद्र किस्म के पौधे

कृषि विज्ञान केंद्र सबलपुर द्वारा इस किस्म को तैयार किया गया है। कम गर्मी वाले समय में इसके पौधे में फल लगते हैं। इसका सेवन करने से खुजली नहीं होती है। 

गजेंद्र किस्म के पौधों को हल्की गर्मी के दिनों में उगाया जाता है। इस तरह के पौधे में सिर्फ एक ही फल निकलता है।

साथ ही, इसके अंदर हल्के नारंगी रंग का गुदा पाया जाता है। प्रति हेक्टेयर में तकरीबन 80 से 85 टन उपज होती है।

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2. संतरागाछी किस्म के पौधे

संतरागाछी किस्म के एक ही पौधे में विभिन्न प्रकार के फल पाए जाते हैं। इन फलों की तासीर हल्की गर्म होती है। हमें खाने से खुजली जैसी समस्या देखने को मिलती है। 

इस फसल की पैदावार तकरीबन 6 से 7 महीने में होनी चालू हो जाती है। इस किस्म की पैदावार 50 टन प्रति हेक्टेयर तक होती है। 

3. एम-15 किस्म के पौधे

एम-15 दक्षिण भारत की स्थानीय किस्मों में है इसे पद्या के नाम से जाना जाता है। इसके फलों की तासीर भी कम गर्मी वाली होती है। 

परंतु, इसको खाने से किसी भी प्रकार की खुजली की समस्या पैदा नहीं होती है। इस प्रजाति में एक ही पौधे में एक ही फल प्राप्त होता है। इसमें 80 टन की पैदावार प्रति हेक्टेयर में होती है। 

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सूरन की बुवाई और बीज उपचार

सूरन की बुवाई आलू की भाँति ही की जाती है। आलू को काटकर लगाया जाता है, लेकिन सूरन को आप पूरा ही लगा सकते हैं। 

अगर आप सूरन को आलू की तरह काट कर लगाते हैं, तो इसके लिए कटिंग वाले कन्दों के अंकुरित होने के लिए कालिका आंखों का होना बहुत ही आवश्यक होता है। 

सूरन की बुवाई करने से पहले उसका उपचार करना काफी जरूरी होता है। 

उपचार करने के एमिसान 5 ग्राम एवं स्ट्रेप्टोसाइक्लिन0. 5 ग्राम को प्रति लीटर पानी में घोलकर कन्द को 30 से 35 मिनट तक भिगोकर रखने के बाद छाया में सुखाएं या फिर ताजी गोबर का गाढ़ा घोल बनाकर उसमें दो ग्राम कार्बोडाइजिम् पाउडर का प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर कन्द को अच्छे से भिगो दें और फिर उसे छाया में अच्छी तरह से सुखाने के बाद ही लगाऐं। 

सूरन की खेती का उपयुक्त समय क्या है ?

भारत में सूरन की खेती करने का सबसे उपयुक्त समय बारिश मौसम के पहले या बारिश मौसम के बाद होता है। अप्रैल मई और जून का महीना भी सूरन की खेती के लिए उपयुक्त होता है। 

परंतु, अगर आप लोगों के पास सिंचाई का साधन उपलब्ध है, तो आप सूरन की बुवाई मार्च महीने में भी कर सकते हैं।

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सूरन की खेती में ध्यान रखने योग्य बातें

  1. सूरन की बुवाई करने के बाद उसे पुआल या पत्तियों से ढंग दे। 
  2. यह बहुत अच्छे उर्वरक का काम करता है। 
  3. अंकुरण जल्दी प्राप्त करने के लिए मल्चिंग नहीं का उपयोग करें जिस खेत में नमी बनी रहती है। 
  4. मल्चिंग विधि का उपयोग करने से खेतों में खरपतवार के काम होने के साथ-साथ पैदावार भी अच्छी होती है। 
  5. खेतों में नमी को बरकरार रखने के लिए एक या दो बार हल्के सिंचाई अवश्य कर दें। 
  6. बरसात के मौसम में सूरन के पौधों के पास जल को एकत्रित न होने दें। 
  7. सूरन के साथ-साथ और अधिक मात्रा में कमाई करने के लिए आप उसके अंदर खाली स्थान में मेहंदी मूंग मक्का खीर लौकी कद्दू आदि फसल की बुवाई कर सकते हैं। 

सूरन का बीज लगाने की विधि

सूरन की बुवाई करने के दो विधियां निम्नलिखित है पहले गड्ढा में दूसरा चौरस खेत में

गड्ढा विधि द्वारा सूरन की बुवाई 

गड्ढा विधि द्वारा सूरन की बुवाई करने के लिए 75×75×30 सेंटीमीटर का गड्ढा खोदकर सूरन की बुवाई की जाती है। बीजों का उपचार करने से पहले उचित मात्रा में खाद एवं उर्वरक को गड्ढे में डाल दिया जाता है। 

सूरन की बुवाई के बाद मिट्टी को 15 सेंटीमीटर पिरामिड के आकार में ऊंचा कर दे सूरन के बीच की बुवाई इस तरह करते हैं, 

ताकि सूरन में निकला कालिका युक्त भाग ऊपर की तरफ सीधा रहे इस प्रकार से गड्ढा विधि द्वारा सूरन की बुवाई की जाती है। 

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चौरस खेत में सूरन की बुवाई की विधि

सूरन की बुवाई करने से पहले गोबर की सड़ी हुई खाद्य रासायनिक उर्वरक पोटाश का एक तिहाई भाग एवं फास्फोरस की पूर्ण मात्रा में मिलकर खेतों में डाल दिया जाता है। 

इसके बाद खेत की जुताई अच्छे से कर दे इसके बाद सूरन के बीज़ों के आकार के अनुसार 80 से 90 सेंटीमीटर की दूरी पर कुदाल की सहायता से 25 से 30 सेंटीमीटर की गहरी नाली बनाकर सूरन की बुवाई कर दे। इसके बाद नालियों में मिट्टी डालकर उसे अच्छे तरीके से ढक दें। 

बीजों की दर 250 ग्राम वाले कांड को 75 सेंटीमीटर की दूरी पर लगाने पर 50 कुंतल प्रति हेक्टेयर की पैदावार होती है।

अगर 500 ग्राम सूरन के बीच को 75 सेंटीमीटर की दूरी में लगाने पर 80 कुंतल प्रति हेक्टेयर की पैदावार प्राप्त होती है।

वहीं, यदि ढाई सौ ग्राम सूरन के बीच को 1 मीटर की दूरी पर लगाया जाए तो 25 कुंतल प्रति हेक्टेयर की दर से पैदावार होती है। 

अगर इस स्थान पर हम 500 ग्राम वाले सूरन के बीज को 1 मीटर की दूरी पर लगाऐं तो 50 कुंतल प्रति हेक्टेयर की दर से पैदावार होती है।

सूरन के खेतों की निराई गुड़ाई और सिंचाई

सूरन की खेती करने के लिए सामान्य रूप से खरपतवारों को काबू करना अत्यंत जरूरी होता है। 

इसके लिए बीजों की बुवाई करने के तकरीबन 15 से 20 दिन बाद प्राकृतिक ढ़ंग से निराई गुड़ाई करनी चाहिए। सूरन के पौधों को तकरीबन चार से पांच बार करना चाहिए। 

सूरन की फसल को अत्यधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है। इसलिए रोपाई के तुरंत बाद ही सिंचाई कर देनी चाहिए

जब तक बीज अंकुरित नहीं हो जाते तब तक खेतों में नमी को बनाए रखें जिसके लिए हमें एक सप्ताह में दो बार सिंचाई करना चाहिए 

सर्दियों के मौसम में 15 से 20 दिन में एक बार इसी सिंचाई करें वही बारिश के मौसम में आवश्यकता पड़ने पर ही सिंचाई करें।

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