एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) पर कपास बेचने के इच्छुक किसानों के लिए रजिस्ट्रेशन अब अनिवार्य हो गया है। कॉटन कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (CCI) ने कपास खरीद के लिए रजिस्ट्रेशन की अंतिम तारीख 31 दिसंबर 2025 तय की है।
महाराष्ट्र सहित पूरे देश में किसान “कपास किसान (Kapas Farmers)” ऐप के जरिए तेजी से पंजीकरण कर रहे हैं। अब तक महाराष्ट्र से करीब 7 लाख और देशभर से लगभग 41 लाख किसान रजिस्ट्रेशन करा चुके हैं, जिससे एमएसपी के प्रति किसानों की बढ़ती रुचि साफ दिखाई देती है।
अमेरिका के साथ टैरिफ तनाव के बाद भारत सरकार द्वारा कॉटन इंपोर्ट ड्यूटी हटाए जाने से घरेलू बाजार में कपास के दाम गिर गए थे। ऐसे में एमएसपी ही किसानों के लिए सबसे बड़ा सहारा बनकर सामने आया है।
इस साल लंबे स्टेपल ग्रेड कपास का एमएसपी 8,110 रुपए प्रति क्विंटल तय किया गया है, जबकि ओपन मार्केट में कीमतों में उतार-चढ़ाव बना हुआ है। इंपोर्ट टैरिफ भी 31 दिसंबर तक हटाया गया है, जिससे बाजार में अस्थिरता बनी हुई है।
सीसीआई द्वारा खरीद बढ़ाए जाने से निजी बाजारों में भी कपास के रेट में कुछ सुधार देखने को मिला है। जहां शुरुआत में कीमत करीब 6,800 रुपए प्रति क्विंटल थी, वहीं अब कई मंडियों में यह 7,400 रुपए के आसपास पहुंच गई है।
हालांकि निजी व्यापारी अक्सर ग्रेड कम बताकर कीमत घटा देते हैं, लेकिन एमएसपी का विकल्प मिलने से किसानों को बेहतर दाम मिल रहे हैं। अब तक सीसीआई ने महाराष्ट्र में लगभग 5 लाख बेल और देशभर में करीब 27 लाख बेल कपास की खरीद की है।
एमएसपी पर कपास बेचने के लिए “Kapas Farmers” ऐप पर रजिस्ट्रेशन करना जरूरी है, जिसमें आधार से जुड़ा मोबाइल नंबर, व्यक्तिगत विवरण और जमीन व फसल की जानकारी भरनी होती है।
रजिस्ट्रेशन के बाद स्थानीय APMC या कृषि विभाग द्वारा फिजिकल वेरिफिकेशन किया जाता है और फिर किसान स्लॉट बुक कर खरीद केंद्र पर कपास बेच सकते हैं। किसानों को ध्यान रखना चाहिए कि बिना ऐप रजिस्ट्रेशन एमएसपी का लाभ नहीं मिलेगा और 31 दिसंबर 2025 से पहले यह प्रक्रिया पूरी करना अनिवार्य है।
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चूरू जिले के किसानों के लिए रबी 2025–26 सीजन में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) से जुड़ी महत्वपूर्ण अधिसूचना जारी की गई है। जिले में चना, सरसों, जौ, इसबगोल, मैथी, तारामीरा, जीरा और गेहूं जैसी प्रमुख रबी फसलों को इस योजना के अंतर्गत अधिसूचित किया गया है। इन फसलों के बीमा कराने की अंतिम तिथि 31 दिसंबर निर्धारित की गई है।
संयुक्त निदेशक कृषि (विस्तार), कैलाश चंद्र ने बताया कि इस बार जिले में फसलों का बीमा कार्य इंडसइंड जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड द्वारा किया जाएगा। यह अधिसूचना किसानों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह योजना प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले नुकसान की भरपाई करने में बड़ी मदद करती है।
रबी सीजन में अक्सर सूखा, पाला, ओलावृष्टि और बेमौसमी बरसात जैसी परिस्थितियाँ फसलों पर भारी प्रभाव डालती हैं, इसलिए समय पर बीमा करवाना आवश्यक है।
फसली ऋण लेने वाले किसान, यानी KCC धारक कृषकों का फसल बीमा स्वतः संबंधित बैंक की ओर से किया जाता है। जैसे ही किसान को फसली ऋण स्वीकृत होता है, उसी ऋण राशि का एक निर्धारित प्रीमियम काटकर उसकी फसल PMFBY के अंतर्गत बीमित हो जाती है।
इसका मतलब है कि KCC धारकों को अलग से आवेदन करने की जरूरत नहीं पड़ती। बैंक स्वयं उनकी जानकारी बीमा कंपनी तक पहुँचाता है और आवश्यक प्रीमियम जमा करता है।
यह व्यवस्था इसलिए बनाई गई है ताकि कृषि ऋण लेने वाले किसान बिना किसी अतिरिक्त प्रक्रिया के फसल बीमा की सुरक्षा प्राप्त कर सकें। कई बार किसान यह मानकर चलते हैं कि उन्हें अलग से आवेदन करना होगा, लेकिन अधिसूचना के अनुसार ऐसा बिल्कुल नहीं है। यदि किसान ने ऋण लिया है और उस ऋण में फसल का उल्लेख है, तो उसका बीमा स्वतः सक्रिय माना जाएगा।
जिन किसानों ने फसली ऋण नहीं लिया है, वे भी फसल बीमा योजना का लाभ ले सकते हैं। इसके लिए उन्हें स्वयं आवेदन करना होगा। आवेदन करने के लिए किसान निम्न विकल्पों का उपयोग कर सकते हैं:-
राष्ट्रीय फसल बीमा पोर्टल (www.pmfby.gov.in), नजदीकी बैंक शाखा, कॉमन सर्विस सेंटर (CSC), बीमा कंपनी के अधिकृत प्रतिनिधि और गैर-ऋणी किसानों को आवेदन के साथ कुछ आवश्यक दस्तावेज जमा करने होते हैं। इनमें आधार कार्ड – किसान की पहचान के लिए।
नवीनतम जमाबंदी की नकल – जिस जमीन पर फसल बोई गई है, उसका रिकॉर्ड। स्वयं-प्रमाणित घोषणा पत्र – जिसमें किसान को प्रत्येक खसरा संख्या का क्षेत्रफल, प्रस्तावित फसल, मालिक का नाम तथा बीमा हित का प्रकार (स्वामित्व या बंटाई) लिखना और मुआवजा मिलने की स्थिति में धनराशि जमा करने हेतु बैंक पासबुक की प्रति शामिल है।
ध्यान देने योग्य बात यह है कि बंटाईदार किसान केवल उसी जिले की भूमि पर बीमा करवा सकते हैं जहाँ वे स्वयं रहते हैं। यह नियम इसलिए लागू किया गया है ताकि स्थानीय स्तर पर सत्यापन आसानी से किया जा सके और फर्जी दावा रोकने में मदद मिले।
कई बार किसान बुवाई के बाद फसल बदल देते हैं या जमीन के किसी हिस्से में दूसरी फसल लगा देते हैं। ऐसे मामलों में फसल परिवर्तन की जानकारी बैंक को देना अनिवार्य है।
चूरू जिले के लिए यह अंतिम तिथि 29 दिसंबर निर्धारित की गई है। यदि किसान फसल बदलते हैं और बैंक को समय पर सूचना नहीं देते, तो नुकसान की स्थिति में दावे का निस्तारण प्रभावित हो सकता है।
यह नियम पारदर्शिता बनाए रखने और बीमा दावों की सटीकता सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया है। कई बार किसान समय पर सूचना नहीं देते और बाद में नुकसान होने पर दावा कर देते हैं, जिससे बीमा कंपनी विवादित स्थिति में आ जाती है। इसलिए सही समय पर सही जानकारी देना आवश्यक है।
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना किसानों की आय सुरक्षा और जोखिम प्रबंधन के लिए बनाई गई है। चूरू जिले में रबी मौसम के दौरान कई प्राकृतिक आपदाएँ फसलों को प्रभावित करती हैं। इस योजना के तहत किसान को बुवाई से कटाई तक प्राकृतिक आपदा के नुकसान पर क्षतिपूर्ति मिलती है।
बेमौसमी बारिश, ओलावृष्टि, बाढ़, प्राकृतिक आग और सूखा या अत्यधिक नमी इन सभी स्थितियों में फसल की औसत उपज घटने पर नुकसान की भरपाई की जाती है।
रबी फसलों को खेत में कटाई के बाद अक्सर 8-14 दिनों तक सुखाने के लिए रखा जाता है। अगर इस दौरान बारिश, ओलावृष्टि, तेज हवा और आग से फसल को नुकसान होता है, तो व्यक्तिगत स्तर पर नुकसान का आकलन कर मुआवजा देने का प्रावधान है। यह सुविधा किसानों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि कटाई के बाद भी नुकसान की आशंका बनी रहती है।
यदि फसल को किसी प्रकार का नुकसान होता है, तो बीमित किसान को 72 घंटे के अंदर इसकी सूचना देना आवश्यक है। किसान निम्न माध्यमों से जानकारी दे सकते हैं:-
समय पर सूचना देने का प्रबंधन इसलिए जरूरी है क्योंकि बीमा कंपनी को नुकसान की स्थिति का निरीक्षण करना होता है। यदि किसान देर से सूचना देता है, तो निरीक्षण संभव नहीं हो पाता और मुआवजे का दावा अस्वीकृत हो सकता है। इसलिए, जैसे ही फसल को नुकसान दिखे, तुरंत सूचना देना किसान के हित में है।
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का मुख्य उद्देश्य है किसानों को प्राकृतिक जोखिमों से सुरक्षा देना और उनकी आय स्थिर रखना। चूरू जैसे जिले, जहाँ मौसम की अनिश्चितता अधिक होती है, वहाँ यह योजना और भी महत्वपूर्ण बन जाती है।
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बिहार सरकार किसानों को आधुनिक कृषि यंत्रों से सशक्त बनाने के लिए फार्म मशीनरी बैंक योजना चला रही है, जिसके तहत ट्रैक्टर, थ्रेसर और अन्य कृषि उपकरणों पर 10 लाख रुपये तक की सब्सिडी दी जा रही है। वर्ष 2025–26 में इस योजना का विस्तार किया गया है, जहां किसानों को 80% तक सब्सिडी प्रदान की जा रही है।
सरकार का उद्देश्य है कि अधिक से अधिक किसान कम लागत में आधुनिक मशीनों का उपयोग कर अपनी खेती को उत्पादक और किफायती बना सकें।
राज्य सरकार ने घोषणा की है कि आगामी वित्तीय वर्ष में बिहार के विभिन्न प्रखंडों में 5,669 फार्म मशीनरी बैंक स्थापित किए जाएंगे।
इसके माध्यम से छोटे और सीमांत किसानों को महंगे कृषि उपकरण किराये पर उपलब्ध कराए जाएंगे ताकि वे समय पर जुताई, बुवाई और कटाई जैसे महत्वपूर्ण कार्य कर सकें। फार्म मशीनरी बैंक सामुदायिक सुविधा केंद्र की तरह कार्य करता है, जहां किसान एक ही स्थान से आधुनिक कृषि यंत्र किराये पर ले पाते हैं।
इन मशीनरी बैंकों में ट्रैक्टर, रोटावेटर, मल्चर, रीपर, थ्रेसर, पावर वीडर, सीड ड्रिल, जीरो-टिल मशीन, स्प्रेयर सहित कई आधुनिक कृषि यंत्र शामिल किए गए हैं।
सरकार न केवल सब्सिडी देती है, बल्कि उपकरणों के संचालन और रखरखाव के प्रशिक्षण की सुविधा भी उपलब्ध कराती है, जिससे ग्रामीण युवाओं के लिए रोजगार के अवसर बढ़ते हैं। इस योजना का मुख्य लक्ष्य कृषि की लागत कम करना, उत्पादन बढ़ाना और किसानों की आय को स्थिर रूप से बढ़ावा देना है।
योजना के लिए आवेदन प्रक्रिया पूरी तरह ऑनलाइन है, जिसमें किसान, किसान समूह, एफपीओ और स्वयं सहायता समूह आवेदन कर सकते हैं। चयनित लाभार्थियों को मशीनरी बैंक स्थापित करने की स्वीकृति और बाद में सब्सिडी की राशि बैंक खाते में उपलब्ध कराई जाती है।
इसके साथ ही राज्य में मुख्यमंत्री निजी नलकूप योजना सहित कई अन्य योजनाएं भी संचालित की जा रही हैं, जिनके तहत मोटर पंप और सिंचाई उपकरणों पर 50% से 80% तक सब्सिडी दी जा रही है। इन पहलों से बिहार में कृषि मशीनरी के उपयोग में तेजी आई है और किसानों को बेहतर, सस्ते व टिकाऊ उपकरण उपलब्ध हो रहे हैं।
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उत्तर प्रदेश सरकार ने सिंचाई की समस्या से जूझ रहे किसानों के लिए एक बड़ी राहत पेश की है। राज्य में नई सोलर पंप योजना की शुरुआत की गई है, जिसके अंतर्गत 40,521 सोलर पंप 60% सब्सिडी के साथ उपलब्ध कराए जाएंगे।
इस व्यवस्था में किसानों को केवल मामूली राशि खर्च करनी होगी जबकि अधिकतर लागत सरकार वहन करेगी। यह पूरी योजना केंद्र की PM-KUSUM स्कीम के तहत संचालित है, और इच्छुक किसान 15 दिसंबर तक आवेदन कर सकते हैं।
आवेदन प्रक्रिया पूरी तरह ‘पहले आओ–पहले पाओ’ के आधार पर तय की गई है, ताकि पारदर्शिता बनी रहे और हर किसान को समान अवसर मिल सके।
आवेदन करते समय किसानों को 5,000 रुपये की टोकन मनी जमा करनी होगी, जिसकी बदौलत फर्जी और अपूर्ण आवेदन स्वतः ही अलग हो जाएंगे। प्रत्येक जिले के लिए पंपों का कोटा निर्धारित है, जिससे हर क्षेत्र के किसानों को समान लाभ प्राप्त हो सके।
यह योजना किसानों के लिए कई आर्थिक और तकनीकी लाभ लेकर आती है। सोलर पंप लगने के बाद किसानों को बिजली या डीजल खर्च की चिंता नहीं करनी पड़ेगी, जिससे सिंचाई की लागत लगभग शून्य हो जाएगी।
फसल की सिंचाई समय पर हो सकेगी, जिससे उत्पादन बढ़ेगा और खेती पर निर्भरता मजबूत होगी। साथ ही, ग्रामीण क्षेत्रों में सौर ऊर्जा के प्रयोग को बढ़ावा मिलेगा, जिससे पर्यावरण को भी लाभ पहुँचेगा।
सरकार का लक्ष्य है कि आधुनिक तकनीक का उपयोग बढ़ाकर खेती को और टिकाऊ बनाया जाए। जल्द ही कृषि विभाग की वेबसाइट पर ऑनलाइन आवेदन लिंक सक्रिय किया जाएगा, जहाँ किसान आवश्यक दस्तावेज अपलोड कर पंजीकरण पूरा कर सकेंगे।
ध्यान रहे कि निर्धारित क्षमता वाले पंप के अनुसार 4, 6 और 8 इंच की बोरिंग किसान को स्वयं करवानी होगी। यदि निरीक्षण के समय बोरिंग नहीं मिली, तो टोकन मनी जब्त कर आवेदन रद्द कर दिया जाएगा।
उत्तर प्रदेश के इच्छुक किसान www.agriculture.up.gov.in पर जाकर अप्लाई करें। पोर्टल पर सबसे पहले ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन करें। पहचान और जमीन से जुड़े जरूरी दस्तावेज अपलोड करें। 5,000 रुपये का टोकन शुल्क जमा करें। आवेदन मंजूरी होने के बाद विभाग की टीम खेत पर जाकर पंप लगाने की प्रक्रिया शुरू करेगी।
किसान इस बात का ध्यान रखें कि कृषि विभाग की तरफ से यह निर्देश दिए गए हैं, कि 2 एचपी के लिए 4 इंच, 3 व 5 एचपी के लिए छह इंच व 7.5 एचपी व 10 एचपी के लिए 8 इंच की बोरिंग अनिवार्य है, जो किसान को खुद करानी होगी। वैरीफिकेशन के समय बोरिंग नहीं होने पर टोकन मनी जब्त हो जाएगी और आवेदन रद्द कर दिया जाएगा।
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भारत का सबसे बड़ा कृषि मेला “पुणे किसान मेला 2025” 10 दिसंबर से मोशी, पिंपरी–चिंचवड़ स्थित पुणे इंटरनेशनल एग्ज़िबिशन एंड कन्वेंशन सेंटर (PIECC) में शुरू हो चुका है। यह मेला 10 से 14 दिसंबर 2025 तक रोज़ाना सुबह 10 बजे से शाम 6 बजे तक आयोजित होगा।
भारतीय कृषि को आधुनिक तकनीकों, नवाचारों और नए व्यापार अवसरों से जोड़ने के उद्देश्य से इस एक्सपो में किसानों को नए ट्रैक्टर, उन्नत कृषि यंत्र और एग्री-टेक सॉल्यूशंस एक ही स्थान पर देखने और खरीदने का मौका मिलेगा।
इस वर्ष मेले में 2 लाख से अधिक किसानों के आने की संभावना है और 1,000+ प्रदर्शक अपने उत्पादों का प्रदर्शन कर रहे हैं। स्मार्ट फार्मिंग, ग्रीन इनोवेशन, स्टार्टअप ज़ोन, बायोटेक और B2B नेटवर्किंग जैसे 15 से ज्यादा थीम-आधारित मंडप विशेष आकर्षण हैं।
साथ ही कई कंपनियां पहली बार अपने नए ट्रैक्टर मॉडल, ड्रोन स्प्रे मशीनें, स्मार्ट सिंचाई सिस्टम और उन्नत एग्री-टेक गेजेट लॉन्च कर रही हैं। 73,000 वर्ग मीटर के विशाल प्रदर्शनी क्षेत्र और बड़े पार्किंग स्पेस के साथ PIECC आसानी से भारी भीड़ को संभाल सकता है।
इस कृषि मेले मेंसोनालीका, सॉलिस यानमार, महिंद्रा, कूपर, कैप्टन जैसे प्रमुख ट्रैक्टर ब्रांड अपने लोकप्रिय और नए मॉडल पेश कर रहे हैं। सोनालीका CNG ट्रैक्टर, टाइगर सीरीज, महिंद्रा कॉटन हार्वेस्टर, कूपर 5001/5000 और कॉम्पैक्ट ट्रैक्टर कई किसानों के आकर्षण का केंद्र हैं।
वहीं शक्तिमान, फील्डकिंग, भूदेव और अन्य कंपनियां नए कृषि उपकरण प्रदर्शित कर रही हैं। हार्वेस्टिंग मशीनरी में क्लास, बलकार, बाहुबली, दशमेश और ग्रीन लैंड जैसे ब्रांडों की आधुनिक मशीनें विशेष रूप से देखने योग्य हैं। टायर सेगमेंट में बीकेटी और CEAT हाई-परफॉर्मेंस कृषि टायर प्रस्तुत कर रहे हैं।
मेला केवल उपकरणों का केंद्र ही नहीं, बल्कि किसानों के लिए सीखने का एक बड़ा मंच है, जहां पैनल डिस्कशन, फील्ड डेमो, वर्कशॉप और सेमिनार लगातार आयोजित किए जा रहे हैं।
प्रदर्शकों को डिजिटल कनेक्ट पैकेज के जरिए रियल-टाइम एनालिटिक्स और किसान ऐप जैसी सुविधाएं मिलेंगी। किसान एग्री शो 2025 के लिए रजिस्ट्रेशन शुरू हो चुका है, और टिकट कीमतें भी काफी किफायती हैं। अधिक जानकारी और ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन के लिए आधिकारिक वेबसाइट पर जा सकते हैं— pune.kisan.in
लाड़ली बहना योजना मध्यप्रदेश सरकार की एक महत्वपूर्ण पहल है, जिसके तहत प्रदेश की महिलाओं को हर माह 1500 रुपये की आर्थिक सहायता दी जा रही है। यह योजना महिलाओं को सशक्त और आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम मानी जाती है।
हाल ही में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने छतरपुर जिले के राजनगर से रिमोट के माध्यम से योजना की 31वीं किस्त जारी की, जिससे 1.26 करोड़ महिलाओं के खातों में राशि सीधे ट्रांसफर की गई। पहले यह राशि 1250 रुपये प्रति माह थी, जिसे बढ़ाकर 1500 रुपये कर दिया गया है।
लाड़ली बहना योजना को शुरू हुए दो साल पूरे हो चुके हैं। वर्ष 2023 में विधानसभा चुनाव से पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस योजना की शुरुआत की थी, जो वर्तमान में केंद्रीय कृषि मंत्री हैं।
योजना की सफलता को देखते हुए महाराष्ट्र में ‘माझी लाडकी बहना’, हरियाणा में ‘लाडो लक्ष्मी’ और झारखंड में ‘मंईयां सम्मान’ जैसी समान योजनाएं शुरू की गईं। इन सभी योजनाओं में महिलाओं को सीधे उनके खाते में आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है।
योजना की शुरुआत में महिलाओं को 1,000 रुपये प्रतिमाह मिलते थे, जिसे बाद में बढ़ाकर 1250 रुपये और अब 1500 रुपये कर दिया गया है। राज्य सरकार का कहना है, कि आने वाले वर्षों में राशि में समय–समय पर बढ़ोतरी की जाएगी और वर्ष 2028 तक यह राशि 3,000 रुपये प्रति माह तक पहुंच सकती है।
इसके साथ ही पात्र महिलाओं को आवास योजना का लाभ मिलने की भी संभावना है। इस प्रकार यह योजना गरीब और जरूरतमंद परिवारों के लिए आर्थिक रूप से काफी सहायक सिद्ध हो रही है।
31वीं किस्त का पैसा डीबीटी के माध्यम से लाभार्थियों के खातों में भेजा जाता है, जिसमें दो–तीन दिन का समय लग सकता है। किस्त की स्थिति जानने के लिए महिलाएं आधिकारिक वेबसाइट पर जाकर आवेदन संख्या या समग्र आईडी दर्ज कर भुगतान स्थिति की जांच कर सकती हैं।
यदि खाता आधार से लिंक न हो या DBT सक्रिय न हो तो राशि आने में समस्या हो सकती है। सही जानकारी होने के बाद भी किस्त न मिलने पर 0755-2700800 हेल्पलाइन नंबर पर संपर्क किया जा सकता है, या सीएम हेल्पलाइन पोर्टल और cmlby.wcd@mp.gov.in ई-मेल पर शिकायत दर्ज कराई जा सकती है।
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भारत में किसानों की आर्थिक आमदनी को बढ़ाने और उन्हें कृषि के आधुनिक एवं लाभकारी स्वरूप से जोड़ने के लिए सरकार कई योजनाएं चला रही है। इन्हीं प्रयासों के अंतर्गत मध्यप्रदेश सरकार ने किसानों को एक और बड़ी सौगात दे दी है।
सरकार ने यह घोषणा की है, कि अगर किसान औषधीय फसलों की खेती करते हैं, तो उन्हें 50% प्रतिशत तक सब्सिडी का लाभ प्रदान किया जाएगा। यह कदम ना केवल किसानों को आर्थिक रूप से मजबूत करेगा, बल्कि उन्हें कम लागत में ज्यादा मुनाफा कमाने का अवसर भी मुहैय्या कराएगा।
मध्यप्रदेश में औषधीय खेती निरंतर विस्तार करती जा रही है। वर्तमान में राज्य में लगभग 46,837 हेक्टेयर क्षेत्र में किसान औषधीय फसलों की खेती कर रहे हैं।
हर साल औषधीय फसलों की मांग और उत्पादन क्षेत्र में तेजी से बढ़ोतरी देखने को मिली है। इसका खास वजह है, कि किसान इन फसलों से कम लागत में ज्यादा मुनाफा प्राप्त कर रहे हैं। औषधीय खेती से कृषि में काफी विविधता बढ़ रही है और किसानों की आर्थिक स्थिति भी काफी मजबूत हो रही है।
आज के समय में न सिर्फ भारत, बल्कि विदेशों में भी औषधीय फसलों की डिमांड तेजी से बढ़ रही है। अधिकांश लोगों का अब नेचुरल और हर्बल प्रोडक्ट्स की तरफ ज्यादा रुझान दिख रहा है, क्योंकि इनके साइड इफेक्ट्स नहीं होते।
आजकल स्वास्थ्य के प्रति जागरुकता बढ़ने के कारण पौधों से बनने वाली आयुर्वेदिक दवाओं और सप्लिमेंट्स की मांग बढ़ रही है। बहुत सारी बड़ी कंपनियां कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के जरिए किसानों से औषधीय फसलें खरीद रही हैं, जिससे किसानों को स्थायी आय का स्रोत मिल रहा है।
किसानों के सशक्तिकरण और लोगों के स्वास्थ्य को मद्देनजर रखते हुए सरकार ने कुछ चुनिंदा औषधीय फसलों को प्राथमिकता सूची में शम्मिलित किया है, जिन पर 50% प्रतिशत तक की सब्सिडी दी जाएगी।
इससे किसानों की लागत कम होगी और लाभ भी दोगुना होगा। इनमें सफेद मूसली, ईसबगोल, तुलसी, अश्वगंधा, कोलियस एवं अन्य चयनित औषधीय पौधे शम्मिलित हैं।
अगर आप भी एक किसान हैं और आप भी इस सरकारी अनुदान का फायदा लेना चाहते हैं, तो आप सबसे पहले अपने जिले के कृषि विभाग या उद्यानिकी विभाग में संपर्क करें।
इसके बाद औषधीय फसल लगाने के लिए विभाग द्वारा उपलब्ध फॉर्म भरना होगा। फसल के अनुसार विभाग आवश्यक तकनीकी सुझाव और दिशा-निर्देश प्रदान करेगा। खेती शुरू होने के बाद विभाग नियमित रूप से मॉनिटरिंग करेगा और किसानों की मदद करेगा। सभी शर्तें पूरी होने पर अनुदान की धन-राशि को किसानों के बैंक खाते में सीधे ट्रांसफर कर दी जाएगी।
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मध्य प्रदेश में पशुपालन आज ग्रामीण अर्थव्यवस्था का सबसे मजबूत स्तंभ बनकर उभर रहा है। खेती के बाद जिस व्यवसाय को ग्रामीण परिवार सबसे ज्यादा अपनाते हैं, वह है डेयरी और पशुपालन, क्योंकि यह स्थिर आय देने वाला क्षेत्र है और इसमें जोखिम भी कम होता है। लाखों किसान और ग्रामीण परिवार दूध उत्पादन, भैंस पालन और डेयरी व्यवसाय से अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत कर रहे हैं।
इस तेजी से बढ़ते पशुपालन कारोबार को और गति देने के लिए मध्य प्रदेश सरकार ने मुख्यमंत्री डेयरी प्लस योजना शुरू की है। इस योजना का मुख्य उद्देश्य गरीब और मध्यमवर्गीय पशुपालकों को उच्च नस्ल की मुर्रा भैंस उपलब्ध कराना और डेयरी व्यवसाय को लाभदायक बनाना है। इसके तहत लाभार्थियों को दो मुर्रा भैंस खरीदने पर 50% फीसद तक सब्सिडी दी जाएगी, जिससे किसान कम पूंजी में अपना डेयरी व्यवसाय शुरू कर सकेंगे।
राज्य सरकार पशुपालन को प्रोत्साहित करने के लिए लाभार्थियों को उनकी श्रेणी के अनुसार सब्सिडी दे रही है:-
दो मुर्रा भैंसें लेने के लिए किसान को ₹1,47,500 रुपये देने होंगे।
SC/ST वर्ग के लाभार्थियों को ज्यादा सहूलियत मिलेगी, उनको सिर्फ ₹73,700 रुपये ही जमा करने पड़ेंगे। शेष धनराशि का आधा भाग सरकार 50% प्रतिशत अनुदान के रूप में स्वयं वहन करेगी। यह रकम पशुपालन विभाग के जरिए से अधिकृत एजेंसियों द्वारा जारी की जाती है, जिससे किसान बिना परेशानी के अपना डेयरी व्यवसाय प्रारंभ कर सकें।
मुख्यमंत्री डेयरी प्लस योजना की खासियत यह है, कि लाभार्थी को सीधे दो उत्तम गुणवत्ता वाली मुर्रा भैंसें उपलब्ध कराई जाती हैं:-
मुख्यमंत्री डेयरी प्लस योजना से किसान शुरुआत से ही दूध उत्पादन शुरू कर सकते हैं। मुर्रा भैंस में तकरीबन 10 महीने का गर्भकाल होता है और यह वर्ष भर बेहतरीन दुग्ध उत्पादन के लिए जानी जाती है।
साथ ही, सरकार लाभार्थी को 6 महीने का चारा भी उपलब्ध कराती है, जिससे नए पशुपालकों का खर्च काफी कम हो जाता है और भैंस को पौष्टिक आहार मिलता रहता है। इससे दूध उत्पादन क्षमता और गुणवत्ता दोनों में बढ़ोतरी होती है।
मुर्रा भैंस भारत की सबसे लोकप्रिय और अधिक दूध देने वाली नस्ल मानी जाती है। इसकी खासियतें जैसे तेज दूध उत्पादन, मजबूत शरीर, कम देखभाल में अच्छी उपज, लंबे समय तक प्रजनन क्षमता, बाजार में ऊंची कीमत (करीब ₹1 लाख तक) और बेहतरीन कमाई मुख्यमंत्री डेयरी प्लस योजना के अंतर्गत मिलने वाली दो मुर्रा भैंसें करीब 20 लीटर प्रतिदिन दूध देती हैं। इससे किसान हर महीने लगभग ₹10,000 से ₹12,000 रुपये तक आराम से कमा सकते हैं।
मुख्यमंत्री डेयरी प्लस योजना का लाभ सिर्फ किसान ही नहीं, बल्कि सामान्य नागरिक भी उठा सकते हैं। लाभार्थी अपने नजदीकी पशु चिकित्सा कार्यालय में जाएं। निर्धारित आवेदन फॉर्म भरें।
योजना के लिए जरूरी कागजात जमा करें
मुख्यमंत्री डेयरी प्लस योजना के अंतर्गत आधार कार्ड, बैंक पासबुक, जाति प्रमाण पत्र (SC/ST के लिए), पशुपालन विभाग दस्तावेजों की जांच कर आवेदन स्वीकृत करेगा। इसके बाद लाभार्थियों को पशु चयन के लिए अधिकृत केंद्रों पर भेजा जाएगा।
प्रश्नोत्तरी
प्रश्न: मुख्यमंत्री डेयरी प्लस योजना का मुख्य उद्देश्य क्या है ?
उत्तर: गरीब और मध्यमवर्गीय पशुपालकों को उच्च नस्ल की मुर्रा भैंस उपलब्ध कराना और डेयरी व्यवसाय को लाभदायक बनाना।
प्रश्न: मुख्यमंत्री डेयरी प्लस योजना के तहत कितनी मुर्रा भैंसें उपलब्ध कराई जाती हैं ?
उत्तर: मुख्यमंत्री डेयरी प्लस योजना के तहत दो मुर्रा भैंसें।
प्रश्न: लाभार्थियों को कितनी सब्सिडी दी जाती है ?
उत्तर: दो मुर्रा भैंस खरीदने पर 50% फीसद तक सब्सिडी दी जाती है।
प्रश्न: सामान्य वर्ग के किसान को दो मुर्रा भैंस लेने पर कितनी राशि देनी होगी ?
उत्तर: सामान्य वर्ग के किसान को दो मुर्रा भैंस लेने पर ₹1,47,500 रुपये का भुगतान करना पड़ेगा।
प्रश्न: SC/ST वर्ग के लाभार्थियों को कितनी राशि जमा करनी होती है ?
उत्तर: SC/ST वर्ग के लाभार्थियों को केवल ₹73,700 रुपये ही जमा करने होंगे।
प्रश्न: SC/ST वर्ग को अधिक छूट क्यों मिलती है ?
उत्तर: SC/ST वर्ग को अधिक छूट इसलिए मिलती है, क्योंकि सरकार 50% प्रतिशत अनुदान स्वयं वहन करती है।
प्रश्न: किसानों को कैसी मुर्रा भैंसें दी जाती हैं ?
उत्तर: पहली भैंस: लगभग 5 महीने गर्भवती, दूसरी भैंस: एक महीने के बछड़े वाली।
सोनालिका ट्रैक्टर्स ने नागपुर में एग्रोविजन 2025 में अपना पहला CNG/CBG ट्रैक्टर दिखाकर सस्टेनेबल खेती में एक नया चैप्टर शुरू किया है। भारत के नंबर 1 ट्रैक्टर एक्सपोर्टर के तौर पर जाना जाने वाला यह ब्रांड इस फ्यूचर-रेडी हॉलेज मशीन के साथ क्लीन मोबिलिटी के लिए अपने कमिटमेंट को और पक्का करता है। इसे भारतीय खेतों में फ्यूल की लागत कम करने और एमिशन कम करने के लिए तैयार किया गया है।
यह अनावरण श्री नितिन गडकरी और श्री शिवराज सिंह चौहान की मौजूदगी में हुआ। उनकी मौजूदगी ने रिन्यूएबल एनर्जी की तरफ भारत के बढ़ते कदम को हाईलाइट किया। यह ट्रैक्टर सरकार के SATAT और गोबरDHAN मिशन को सपोर्ट करता है, जिसका लक्ष्य ग्रामीण भारत में बायो-एनर्जी के उपयोग को बढ़ाना है।
कम ऑपरेटिंग कॉस्ट वाला एक हेवी-ड्यूटी ट्रैक्टर, नया CBG/CNG ट्रैक्टर हेवी हॉलेज के लिए तैयार किया गया है। जहाँ टॉर्क, ड्यूरेबिलिटी और फ्यूल की बचत जरूरी है।
फ्यूल बचाने वाला 2000 RPM इंजन, साइड-शिफ्ट सिस्टम के साथ 12+3 कॉन्स्टेंट मेश ट्रांसमिशन, ज़्यादा मजबूत ढुलाई के लिए 14.9x28 रियर टायर
40 kg डुअल फ्यूल कैपेसिटी (CNG + CBG), जिससे बार-बार रीफिलिंग की जरूरत नहीं पड़ती, एग्रोविजन 2025 में, सोनालीका ने CNG इस्तेमाल के लिए ऑप्टिमाइज किया गया एक ट्रैक्टर-ट्रॉली सेटअप भी दिखाया। यह ग्रामीण भारत में बढ़ते CNG इंफ्रास्ट्रक्चर को सपोर्ट करता है।
इंटरनेशनल ट्रैक्टर्स लिमिटेड के जॉइंट मैनेजिंग डायरेक्टर, रमन मित्तल ने कहा कि यह लॉन्च सोनालीका के पावरफुल लेकिन इको-फ्रेंडली टेक्नोलॉजी पर फोकस को और मजबूत करता है।
उन्होंने कहा कि साफ, स्मार्ट और कॉस्ट-एफिशिएंट सॉल्यूशन भारतीय खेती के अगले फेज़ को तय करेंगे।
नया ट्रैक्टर मजबूत ढुलाई, कम ऑपरेटिंग कॉस्ट और कम एमिशन देकर इस लक्ष्य के साथ है। सोनालीका ट्रैक्टर का मकसद किसानों को ऐसी तकनीक देना है, जो हैवी-ड्यूटी परफॉर्मेंस दे और साथ ही एक साफ और ज़्यादा सस्टेनेबल भविष्य को सपोर्ट करे।
प्रश्नोत्तरी
प्रश्न: सोनालिका ने अपना पहला CNG/CBG ट्रैक्टर किस इवेंट में प्रदर्शित किया ?
सोनालिका ने अपना पहला CNG/CBG ट्रैक्टर एग्रोविजन 2025, नागपुर इवेंट में पेश किया है।
प्रश्न: यह ट्रैक्टर भारत के किन दो प्रमुख सरकारी मिशनों को सपोर्ट करता है ?
SATAT मिशन और गोबरDHAN मिशन
प्रश्न: इस नए CNG/CBG ट्रैक्टर की इंजन RPM क्षमता कितनी है ?
इस नए CNG/CBG ट्रैक्टर की इंजन 2000 RPM तक है।
प्रश्न: इस ट्रैक्टर में किस प्रकार का ट्रांसमिशन दिया गया है ?
इस ट्रैक्टर में 12+3 कॉन्स्टेंट मेश ट्रांसमिशन (साइड-शिफ्ट सिस्टम) है।
राजस्थान सरकार का बड़ा फैसला, किसानों की बढ़ेगी कमाई, केंद्र की मंजूरी के बाद कई उपज की 24 नवंबर से शुरू होगी खरीद प्रक्रिया, 3 लाख से अधिक किसानों ने कराया रजिस्ट्रेशन—बायोमेट्रिक पहचान अनिवार्य।
राजस्थान में समर्थन मूल्य (MSP) पर खरीफ फसलों—मूंग, मूंगफली, सोयाबीन और उड़द—की खरीद 24 नवंबर से शुरू होने जा रही है। इसके लिए अब तक 3.12 लाख से अधिक किसानों ने रजिस्ट्रेशन करवा लिया है। मंगलवार को केंद्र सरकार से खरीद प्रक्रिया के लिए औपचारिक मंजूरी मिल गई है।
सहकारिता राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) गौतम कुमार दक ने बताया कि केंद्र सरकार की ओर से निर्धारित लक्ष्य के अनुसार इस बार 3,05,750 मीट्रिक टन मूंग, 1,68,000 मीट्रिक टन उड़द, 5,54,750 मीट्रिक टन मूंगफली और 2,65,000 मीट्रिक टन सोयाबीन की खरीद की जाएगी।
जानकारी के अनुसार, मूंग की 340, मूंगफली की 302, सोयाबीन की 79 और उड़द की 151 केंद्रों पर खरीद की जाएगी। अब तक मूंग बेचने के लिए 97 हजार 392, मूंगफली के लिए 1 लाख 87 हजार 580 सोयाबीन के लिए 26 हजार 143 एवं उड़द के लिए 1 हजार 681 किसानों ने रजिस्ट्रेशन करवाया है।
इस प्रकार अब तक कुल 3 लाख 12 हजार 796 किसान समर्थन मूल्य पर उपज बेचने के लिए रजिस्ट्रेशन करवा चुके हैं। केंद्र सरकार द्वारा मूंग का समर्थन मूल्य 8,768 रुपये, मूंगफली का 7,263 रुपये, उड़द का 7,800 रुपये और सोयाबीन का समर्थन मूल्य 5,328 रुपये प्रति क्विंटल (एफ.ए.क्यू. श्रेणी ) घोषित किया गया है.
इस तरह कुल 3,12,796 से अधिक किसान समर्थन मूल्य पर अपनी उपज बेचने के लिए रजिस्ट्रेशन करा चुके हैं।
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केंद्र सरकार की ओर से घोषित समर्थन मूल्य (एफ.ए.क्यू. श्रेणी):
सहकारिता मंत्री ने बताया कि बीकानेर और चूरू जिलों में फर्जी गिरदावरी और फर्जी रजिस्ट्रेशन की शिकायतों पर जांच करवाई गई। जांच में बीकानेर में 5,954 और चूरू में 9,819 फर्जी रजिस्ट्रेशन पाए गए।
राजफेड ने ऐसे सभी टोकन निरस्त कर दिए हैं और वास्तविक किसानों के लिए खरीद सीमा तक नए रजिस्ट्रेशन किए जाएंगे।
इस बार MSP पर खरीद किसानों की आधार आधारित बायोमेट्रिक पहचान के माध्यम से होगी। OTP के जरिए खरीद की सुविधा उपलब्ध नहीं रहेगी। केंद्र सरकार की गाइडलाइन के अनुसार NAFED और NCCF की ओर से 90 दिनों के भीतर खरीद पूरी की जाएगी।
सहकारिता मंत्री ने राजफेड को सभी खरीद केंद्रों पर जरूरी व्यवस्थाएं समय पर पूरा करने के निर्देश दिए हैं, ताकि किसानों को किसी भी प्रकार की परेशानी का सामना न करना पड़े।
प्रश्न: राजस्थान में MSP पर खरीफ फसलों की खरीद कब से शुरू होगी?
उत्तर: राजस्थान में MSP पर खरीफ फसलों की खरीद 24 नवंबर से शुरू होगी।
प्रश्न: राज्य में किन फसलों की MSP पर खरीद की जाएगी ?
उत्तर: मूंग, उड़द, सोयाबीन और मूंगफली।
प्रश्न: MSP खरीद के लिए अब तक कितने किसानों ने रजिस्ट्रेशन करवाया है?
उत्तर: अब तक 3,12,796 से अधिक किसानों ने रजिस्ट्रेशन कराया है।
प्रश्न: केंद्र सरकार ने मूंग का MSP कितना निर्धारित किया है ?
उत्तर: केंद्र सरकार ने मूंग का MSP 8,768 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है।
प्रश्न: मूंगफली का समर्थन मूल्य (MSP) कितना है ?
उत्तर: मूंगफली का समर्थन मूल्य (MSP) 7,263 रुपये प्रति क्विंटल है।
किसानों और ग्रामीण उद्यमियों को प्रोत्साहित करने और उन्हें व्यवसाय खोलने के लिए सरकार की ओर से प्रयास किए जा रहे हैं। इसी कड़ी में उद्यानिकी और खाद्य प्रसंस्करण विभाग द्वारा प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य उद्योग उन्नयन (PMFME) योजना के तहत विभिन्न खाद्य प्रसंस्करण यूनिट्स की स्थापना पर अनुदान दिया जा रहा है।
इस योजना के तहत किसान और उद्यमी यदि आटा चक्की, मसाला चक्की, डेयरी प्रोडक्ट यूनिट, पापड़, अचार, नमकीन यूनिट, गुड़ घाना, टमाटर केचप, अदरक सोंठ, आलू चिप्स जैसी किसी भी खाद्य प्रसंस्करण यूनिट (इकाई) की स्थापना करते हैं, तो उन्हें लागत का 35% या अधिकतम 10 लाख रुपए तक की सब्सिडी दी जाएगी।
यदि आप भी किसान या उद्यमी हैं और अपना व्यवसाय शुरू करना चाहते हैं तो यह योजना आपके लिए बहुत काम की साबित हो सकती है। आज हम आपको इस योजना की जानकारी दे रहे हैं, ताकि आप भी इस योजना का लाभ उठाकर अपना स्वयं का व्यवसाय स्थापित करके अच्छी कमाई कर सकें, तो आइए जानते हैं, इसके बारे में।
उद्यानिकी विभाग, छिंदवाड़ा के उप संचालक द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक यह योजना आत्मनिर्भर भारत अभियान के अंतर्गत चलाई जा रही है, जिसका उद्देश्य छोटे-मध्यम स्तर के किसानों, ग्रामीण महिलाओं, स्व-सहायता समूहों और स्थानीय उद्यमियों को अपने स्वयं के प्रसंस्करण उद्योग शुरू करने के लिए प्रेरित करना है। आज के समय में कृषि क्षेत्र में वैल्यू एडिशन की मांग तेजी से बढ़ी है, ऐसे में खाद्य प्रसंस्करण यूनिट शुरू करना किसानों के लिए कमाई का बड़ा साधन बन सकता है।
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PMFME योजना का लक्ष्य किसानों और सूक्ष्म उद्यमियों को तकनीकी मार्गदर्शन, ब्रांडिंग-मार्केटिंग सहायता और वित्तीय सहायता देना है। इस योजना के तहत यदि कोई किसान या उद्यमी अपनी उत्पादन क्षमता बढ़ाने, नया यूनिट लगाने या पहले से चल रही यूनिट को अपग्रेड करना चाहता है, तो सरकार उससे जुड़ी लागत का एक हिस्सा अनुदान के रूप में प्रदान करती है।
उदाहरण के तौर पर, यदि किसी किसान को आटा चक्की लगानी है और उसके लिए 25 से 30 लाख रुपए की लागत आती है, तो उसे करीब 8 से 10 लाख रुपए तक की सहायता दी जा सकती है। इससे किसान पर आर्थिक बोझ कम होता है और व्यवसाय शुरू करने में आसानी मिलती है।
पीएमएफएमई (PMFME) योजना के तहत उपकरणों की खरीद के अलावा पैकेजिंग, ग्रेडिंग, मशीनरी के आधुनिकीकरण और उत्पादन क्षमता में बढ़ोतरी पर भी अनुदान मिलता है। ग्रामीण इलाकों में इन उद्योगों की स्थापना से स्थानीय युवाओं को रोजगार भी मिल रहा है और किसानों को अपनी फसल का बेहतर मूल्य प्राप्त होता है।
उप संचालक उद्यान ने बताया कि इस योजना के तहत आटा चक्की, मसाला चक्की, आलू चिप्स यूनिट, टमाटर केचप उत्पादन यूनिट, अदरक का सोंठ पाउडर, लहसुन पाउडर, पापड़, बरी, नमकीन, मिठाई, डेयरी प्रोडक्ट यूनिट, पशु आहार निर्माण यूनिट, गुड़ घाना, जूस फैक्ट्री और अन्य खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के लिए अनुदान दिया जाता है। इस योजना की सहायता से किसान कृषि उपज को सीधे बाजार में कच्चे रूप में बेचने की बजाय प्रोसेस्ड रूप में बेचकर दुगुना–तिगुना मुनाफा कमा सकते हैं।
उद्यमी और किसान इस योजना के लिए जिले के उद्यानिकी विभाग के मैदानी स्टाफ, ग्रामीण उद्यान विस्तार अधिकारी, वरिष्ठ उद्यान विकास अधिकारी या जिला कार्यालय से संपर्क कर आवेदन की प्रक्रिया शुरू कर सकते हैं। इसके अलावा, विभाग द्वारा अधिक जानकारी और सहायता के लिए नियुक्त जिला रिसोर्स पर्सन (DRP) के मोबाइल नंबर भी जारी किए गए हैं, जो इस प्रकार से हैं, आप इन नंबरों पर भी जानकारी ले सकते हैं।
ये अधिकारी आवेदन प्रक्रिया, आवश्यक दस्तावेज, पात्रता और यूनिट लगाने से जुड़ी सभी तकनीकी जानकारी उपलब्ध कराएंगे। आवेदन की प्रक्रिया सरल बनाई गई है ताकि अधिक से अधिक किसान और ग्रामीण उद्यमी इस योजना का लाभ उठा सकें।
सरकार की मंशा है कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत किया जाए, इसलिए इस योजना का लाभ महिला स्व-सहायता समूह (SHG) भी ले सकते हैं। SHG के माध्यम से खाद्य प्रसंस्करण यूनिट स्थापित करने पर समूह की आर्थिक स्थिति मजबूत होती है और गांव में रोजगार के नए अवसर पैदा होते हैं।
सरकार की ओर से दी जा रही 10 लाख रुपए तक की सब्सिडी उन किसानों के लिए सुनहरा मौका है जो खेती के साथ अपना छोटा उद्योग शुरू करना चाहते हैं। प्रसंस्करण यूनिट लगाने से आय के नए स्रोत बनते हैं और उनकी फसल का वैल्यू एडिशन होता है। इस योजना के जरिये किसान स्थानीय स्तर पर उत्पादों की मार्केटिंग, पैकेजिंग और ब्रांडिंग करके अपने उत्पादों को बड़े बाजार तक पहुंचा सकते हैं। पीएमएफएमई (PMFME) योजना ग्रामीण उद्यमिता को बढ़ावा देने का एक प्रभावी माध्यम बनकर उभर रही है। इससे किसान व छोटे उद्यमी लाभ उठा सकते हैं।
किसानों और ग्रामीण उद्यमियों को स्वावलंबी बनाने के लिए सरकार लगातार विभिन्न योजनाएँ चला रही है। इसी क्रम में उद्यानिकी और खाद्य प्रसंस्करण विभाग प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य उद्योग उन्नयन (PMFME) योजना के तहत विभिन्न खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना पर अनुदान उपलब्ध करा रहा है। इस योजना का उद्देश्य किसानों, स्व-सहायता समूहों और ग्रामीण युवाओं को खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में व्यवसाय शुरू करने के लिए प्रोत्साहित करना है।
अगर कोई किसान या उद्यमी आटा चक्की, मसाला चक्की, डेयरी प्रोडक्ट यूनिट, नमकीन, पापड़, अचार, टमाटर केचप, गुड़ घाना, आलू चिप्स या अन्य खाद्य प्रसंस्करण यूनिट लगाता है, तो इस योजना के तहत सरकार लागत का 35 प्रतिशत या अधिकतम 10 लाख रुपए तक की सब्सिडी देती है। इससे किसानों पर आर्थिक बोझ कम होता है और उद्योग लगाने की राह आसान हो जाती है। उदाहरणस्वरूप, यदि किसी यूनिट की लागत 25–30 लाख रुपये है, तो लगभग 8–10 लाख रुपये तक की सहायता मिल सकती है।
उद्यानिकी विभाग, छिंदवाड़ा के अनुसार यह योजना आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत चलाई जा रही है, जिसका लक्ष्य ग्रामीण क्षेत्रों में वैल्यू एडिशन बढ़ाकर किसानों की आय में वृद्धि करना है। आज कृषि उत्पादों के प्रोसेसिंग की मांग तेजी से बढ़ रही है, ऐसे में प्रसंस्करण यूनिट लगाना एक लाभदायक व्यवसाय साबित हो सकता है। यूनिट लगाने के अलावा उत्पादन क्षमता बढ़ाने, मशीनरी के आधुनिकीकरण, पैकेजिंग और ग्रेडिंग पर भी अनुदान मिलता है।
आटा चक्की, मसाला चक्की, पशु आहार निर्माण, डेयरी उत्पाद, पापड़-बड़ी, मिठाई, फलों के रस, गुड़ प्रसंस्करण और अन्य खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों को योजना में शामिल किया गया है। इससे किसान फसल को कच्चे स्वरूप में बेचने के बजाय प्रोसेस्ड रूप में बेचकर दुगुना-तिगुना लाभ कमा सकते हैं। इससे ग्रामीण इलाकों में रोजगार भी बढ़ता है और स्थानीय कृषि उत्पादों की ब्रांडिंग और मार्केटिंग को बढ़ावा मिलता है।
योजना के लिए आवेदन जिले के उद्यानिकी विभाग, ग्रामीण उद्यान विस्तार अधिकारी, वरिष्ठ उद्यान विकास अधिकारी या जिला कार्यालय के माध्यम से किया जा सकता है। साथ ही अधिक जानकारी के लिए विभाग द्वारा नियुक्त जिला रिसोर्स पर्सन (DRP) से संपर्क भी किया जा सकता है:-
ये अधिकारी आवेदन प्रक्रिया, दस्तावेज़ों, पात्रता और मशीनरी स्थापना से जुड़ी तकनीकी सहायता उपलब्ध कराते हैं।
यह योजना महिला स्व-सहायता समूहों (SHG) के लिए भी बड़ा अवसर है। समूहों द्वारा यूनिट लगाने से आर्थिक सशक्तिकरण बढ़ता है और गांव में रोजगार के नए अवसर पैदा होते हैं। सरकार की ओर से दी जा रही 10 लाख रुपए तक की सब्सिडी उन किसानों और उद्यमियों के लिए महत्वपूर्ण अवसर है, जो खेती के साथ अपना उद्योग शुरू करना चाहते हैं।
कुल मिलाकर, PMFME योजना ग्रामीण उद्यमिता को बढ़ावा देने और किसानों की आय बढ़ाने का एक प्रभावी माध्यम बनकर उभर रही है। इससे किसान न केवल अपनी फसल का बेहतर मूल्य प्राप्त कर सकते हैं, बल्कि स्थानीय स्तर पर उत्पाद तैयार कर उन्हें बड़े बाजारों तक पहुंचा सकते हैं।
प्रश्न: PMFME योजना का पूर्ण नाम क्या है ?
उत्तर: PMFME योजना का पूरा नाम प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य उद्योग उन्नयन योजना है।
प्रश्न: PMFME योजना किस अभियान के अंतर्गत संचालित की जाती है ?
उत्तर: PMFME योजना आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत संचालित की जाती है।
प्रश्न: योजना के तहत कितना अनुदान मिल सकता है ?
उत्तर: अगर किसी खाद्य प्रसंस्करण यूनिट की लागत 25–30 लाख रुपये हो तो लगभग 8-10 लाख रुपये या लागत का 35% तक अनुदान मिल जाएगा।
प्रश्न: PMFME योजना का मुख्य उद्देश्य क्या है ?
उत्तर: योजना का उद्देश्य किसानों और सूक्ष्म उद्यमियों को खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना के लिए वित्तीय, तकनीकी और विपणन सहायता प्रदान करना है।
भारत में कृषि क्षेत्र को मजबूत बनाने और छोटे किसानों को आर्थिक रूप से सशक्त करने के उद्देश्य से भारत सरकार कई कल्याणकारी योजनाएं चला रही है। इन्हीं महत्वपूर्ण योजनाओं में से एक है प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना (PM Kisan Yojana), जिसकी शुरुआत वर्ष 2019 में की गई थी। इस योजना के माध्यम से सरकार देश के पात्र किसानों को हर वर्ष 6,000 रुपये की आर्थिक सहायता प्रदान करती है, जिसे दो-दो हजार की तीन किस्तों में सीधे बैंक खाते में भेजा जाता है।
प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना की 21वीं किस्त 19 नवंबर 2025 को जारी होगी, जिससे 9 करोड़ किसानों को लाभ मिलेगा। योजना के तहत सालाना 6,000 रुपये तीन किस्तों में दिए जाते हैं। नियमों के अनुसार पति और पत्नी दोनों एक साथ लाभ नहीं ले सकते; परिवार में केवल उस सदस्य को लाभ मिलता है जिसके नाम कृषि भूमि दर्ज हो। किस्त पाने के लिए ई-केवाईसी और भूलेख सत्यापन अनिवार्य है।
इस सहायता का उद्देश्य किसानों को खेती के दौरान आने वाली छोटी-मोटी आर्थिक जरूरतों को पूरा करने में मदद करना है, ताकि वे खेती की निरंतरता बनाए रख सकें। वर्तमान समय में देश के करोड़ों किसान इस योजना का लाभ लेकर अपने जीवन और कृषि कार्यों में सुधार कर रहे हैं।
सरकार ने घोषणा की है कि प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना की 21वीं किस्त 19 नवंबर 2025 को जारी की जाएगी। लंबे समय से किसान इस किस्त का इंतजार कर रहे थे, और अब उनका यह इंतजार खत्म होने वाला है। इस बार सरकार द्वारा लगभग 9 करोड़ किसानों के बैंक खातों में 18 हजार करोड़ रुपये की राशि ट्रांसफर की जाएगी।
हर वर्ष की तरह इस बार भी सरकार लाभार्थियों के खातों में सीधे डीबीटी (Direct Benefit Transfer) के माध्यम से किस्त भेजेगी, जिससे पारदर्शिता बनी रहती है। PM Kisan Yojana की किस्त जारी होने से देशभर में छोटे और सीमांत किसानों को राहत मिलेगी, और वे रबी सीजन के कार्यों में इस राशि का उपयोग कर सकेंगे।
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अक्सर किसानों के मन में यह सवाल उठता है कि क्या परिवार में किसान पति और पत्नी दोनों इस योजना के लिए आवेदन कर सकते हैं और लाभ प्राप्त कर सकते हैं ?
योजना के नियमों के अनुसार पति और पत्नी दोनों एक साथ PM Kisan Yojana का लाभ नहीं ले सकते। यह योजना प्रति परिवार आधारित है, न कि व्यक्तिगत आधार पर।
PM Kisan Yojana में पति-पत्नी दोनों को लाभ न देने का कारण यह है कि योजना का उद्देश्य अधिक से अधिक परिवारों को सहायता प्रदान करना है, न कि एक ही परिवार को दोहरी सहायता देना।
यदि पति और पत्नी दोनों को लाभ मिलने लगे, तो एक ही परिवार में जमीन की स्थिति चाहे वही हो, लेकिन सहायता की मात्रा दो गुना हो जाएगी। इससे उन परिवारों के साथ असमानता होगी जिनके पास कृषि भूमि कम है या सीमांत किसान हैं। इसलिए योजना में पारिवारिक आधार का नियम रखा गया है।
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केंद्र सरकार द्वारा योजना का लाभ प्राप्त करने के लिए पात्रता के अहम मानदंड तय किए हैं, जो निम्नलिखित हैं:-
21वीं किस्त प्राप्त करने के लिए किसानों को एक और महत्वपूर्ण नियम का ध्यान रखना बेहद जरूरी है। सरकार ने स्पष्ट कर दिया है, कि PM Kisan Yojana का लाभ तभी मिलेगा जब किसान अपनी ई-केवाईसी (e-KYC) और भूलेख सत्यापन (Land Record Verification) पूरा कर लेंगे।
यदि किसान समय रहते e-KYC नहीं कराते हैं तो उनकी किस्त रोक दी जाती है। लाभार्थी की स्थिति "Pending" दिखने लगती है। बैंक खाते में पैसा ट्रांसफर नहीं किया जाता। इसलिए किसानों को सलाह दी जाती है कि वे अपने नजदीकी CSC केंद्र, ऑनलाइन पोर्टल या PM Kisan ऐप के माध्यम से समय पर e-KYC पूरा करें।
PM Kisan Yojana देश में सबसे लोकप्रिय कृषि योजनाओं में से एक बन चुकी है। इसके पीछे कई कारण हैं-
सरकार लगातार इस योजना को और पारदर्शी और सुलभ बनाने के लिए कदम उठा रही है, ताकि अधिक से अधिक किसानों को लाभ मिल सके।
प्रश्न: पीएम किसान योजना की 21वीं किस्त कब जारी होगी ?
उत्तर: 19 नवंबर 2025
प्रश्न: PM Kisan Yojana के तहत हर वर्ष किसान को कितनी आर्थिक सहायता मिलती है ?
उत्तर: ₹6,000
प्रश्न: PM किसान की 21वीं किस्त से कितने किसानों को लाभ मिलने वाला है ?
उत्तर: 9 करोड़
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