भारत की केंद्र और राज्य सरकारें अपने अपने स्तर से किसानों की आय को दोगुना करने के लक्ष्य को लेकर निरंतर कार्य कर रही हैं।
केंद्र सरकार हमेशा से किसानों की उन्नति और आर्थिक स्थिति को मजबूत करने का हर संभव प्रयास कर रही है।
अब इसी कड़ी में खेती-किसानी के लिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने संसद में वित्त विधेयक पर चर्चा करते हुए कहा कि "वस्तु एवं सेवा कर (GST) को तर्कसंगत बनाने के लिए गठित मंत्रियों के समूह (GoM) द्वारा ड्रिप सिंचाई प्रणाली, उर्वरक और कीटनाशकों जैसे प्रमुख कृषि इनपुट पर जीएसटी कम करने के प्रस्ताव की समीक्षा की जा रही है।
सिर्फ इतना ही नहीं खाद्य क्षेत्र से जुड़े उत्पादों पर जीएसटी दरों का आकलन भी किया जा रहा है।"
देश के कई प्रमुख किसान संगठनों द्वारा कृषि उपकरणों और इनपुट पर जीएसटी पूरी तरह से समाप्त करने की मांग की है। इन समूहों में भारतीय किसान संघ (BKS) और अन्य किसान संगठनों भी शामिल हैं।
किसानों का कहना है, कि कृषि उपकरणों और इनपुट पर जीएसटी पूरी तरह से हटाने के परिणामस्वरूप यह किसानों के बड़े वित्तीय बोझ को कम करेगा, जिससे खेती की लागत में काफी गिरावट देखने को मिलेगी।
खेती की लागत कम करने के लिए इसको पूरी तरह से माफ किया जाना चाहिए। फलस्वरूप किसानों को इससे अधिक मुनाफा हांसिल हो सकेगा।
वित्त विधेयक, 2025 पर पूछे गए सवालों का जवाब देते हुए सीतारमण ने कहा कि "ट्रैक्टर, ड्रिप सिंचाई प्रणाली, उर्वरक और कीटनाशकों सहित कृषि इनपुट पर जीएसटी को शून्य करने के प्रस्ताव पर 17 सितंबर, 2021 को 45वीं जीएसटी परिषद की बैठक में चर्चा की गई थी, लेकिन उस समय इस पर सहमति नहीं बन पाई।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आगे कहा कि "अब मंत्रियों का समूह इस पर विचार कर रहा है, इसलिए इन मदों पर जीओएम द्वारा विचार किया जाएगा और वे इस पर निर्णय लेंगे।" बाद में लोकसभा ने वित्त विधेयक, 2025 पारित कर दिया।
केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के आदेशानुसार कृषि उपकरणों और इनपुट पर वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) कम करने के प्रस्ताव की मंत्रियों के एक समूह (जीओएम) द्वारा समीक्षा की जा रही है। किसान साथियों को इसकी वजह से कम लागत में अधिक लाभ हांसिल हो सकेगा।
उत्तर प्रदेश के किसानों के लिए एक और राहत भरी खबर सामने आई है। योगी सरकार ने कृषकों की आर्थिक सुरक्षा को मजबूत करने के लिए जायद सीजन की 9 नई फसलों को फसल बीमा योजना और किसान क्रेडिट कार्ड (KCC) के दायरे में लाने का फैसला लिया है।
वर्तमान में उत्तर प्रदेश के किसान मूंगफली, मक्का, मूंग, उड़द, पपीता, लीची, तरबूज, खरबूज और आंवला जैसी फसलों के लिए भी बीमा योजना का लाभ प्राप्त कर सकेंगे। किसानों को इस पहल से मौसम और प्राकृतिक आपदाओं से होने वाली क्षति से सहूलियत मिलेगी।
उत्तर प्रदेश सरकार के इस अहम फैसले का एक और बड़ा फायदा यह है, कि अगर किसान की फसल बारिश, सूखा, बाढ़ या ओलावृष्टि जैसी प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित होती है, तो उन्हें बीमा योजना के अंतर्गत मुआवजा उपलब्ध कराया जाएगा।
उत्तर प्रदेश सरकार के इस कदम से किसानों को होने वाली आर्थिक हानि की भरपाई की जा सकेगी और वे सुरक्षित भविष्य की तरफ बढ़ सकेंगे।
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प्रदेश सरकार ने मखाना की खेती को भी बढ़ावा देने की दिशा में एक और महत्वपूर्ण कदम उठाया है। मखाना को स्केल ऑफ फाइनेंस में शामिल कर इसे भी आसान ऋण योजना का हिस्सा बना दिया गया है।
अब किसान खरीफ और रबी की फसलों के साथ मखाना की खेती के लिए भी किफायती लोन प्राप्त कर सकेंगे। इस निर्णय से मखाना उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा और किसानों की आमदनी में इजाफा होगा।
किसान क्रेडिट कार्ड (KCC) के अंतर्गत इन फसलों को जोड़ने से किसानों को सस्ती ब्याज दर पर कर्ज मिलने का फायदा मिलेगा। विशेष रूप से समय पर ऋण चुकाने वाले कृषकों को 3% प्रतिशत तक अतिरिक्त ब्याज छूट प्रदान की जाएगी।
इसके अलावा, केंद्र सरकार ने KCC की क्रेडिट सीमा को बढ़ाकर ₹5 लाख कर दिया है, जिससे किसानों को खेती के लिए आर्थिक मजबूती मिलेगी और उनकी वित्तीय समस्याएं भी कम होंगी।
पशुपालन से जुड़े किसानों के लिए भी सरकार ने राहत देने वाले कदम उठाए हैं। मुख्यमंत्री स्वदेशी गौ-संवर्धन योजना के तहत गिर, साहीवाल, हरियाणा और थारपारकर नस्ल की गायों की यूनिट लगाने पर 40% प्रतिशत तक का अनुदान दिया जाएगा।
योगी सरकार ने किसानों के हित में उपरोक्त काफी बेहतरीन कदम उठाऐ हैं। उत्तर प्रदेश के किसानों को इन कदमों से काफी हद तक आर्थिक मजबूती मिलेगी।
बिहार सरकार की तरफ से शहरी क्षेत्रों में छत पर बागवानी को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से फार्मिंग बेड और गमले की योजनाएं लागू की हैं, ताकि लोग ताजे फल, फूल और सब्जियों का उत्पादन कर सकें।
फार्मिंग बेड योजना में 75% प्रतिशत अनुदान मिलेगा और बची हुई धनराशि लाभार्थियों को स्वयं चुकानी पड़ेगी।
यह योजना का लाभ पटना, भागलपुर, गया और मुजफ्फरपुर के शहरी इलाकों को मुहैय्या कराया जा रहा है। इसके दो प्रमुख घटक हैं - फार्मिंग बेड योजना और गमले की योजना।
फार्मिंग बेड योजना के तहत 300 वर्ग फीट क्षेत्र में बागवानी के लिए ₹48,574 की लागत पर 75% यानी ₹36,430.50 का अनुदान मिलेगा। वहीं, गमले की योजना में प्रति इकाई ₹8,975 की लागत पर ₹6,731.25 का अनुदान दिया जाएगा।
जानकारी के लिए बतादें, कि इस योजना के अंतर्गत 78.6% सामान्य वर्ग, 20% अनुसूचित जाति, और 1.4% अनुसूचित जनजाति को शामिल किया जाएगा।
साथ ही, 30% प्रतिशत प्राथमिकता महिलाओं को दी जाएगी। ऐसे में आइए विस्तार से जानते हैं फार्मिंग बेड योजना और गमले की योजना क्या है ? इस योजना का कैसे मिलेगा लाभ?
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फार्मिंग बेड योजना के अंतर्गत छत पर खेती करने के लिए 300 वर्ग फीट जगह की जरूरत होती है। इस योजना की कुल लागत प्रति इकाई 48,574 रुपये है, जिसमें से सरकार 75% यानी 36,430.50 रुपये अनुदान के रूप में देती है। लाभार्थी को मात्र 12,143.50 रुपये का भुगतान करना होगा।
फार्मिंग बेड योजना के अंतर्गत लाभार्थियों को उन्नत खेती के लिए आवश्यक सामग्री जैसे पोर्टेबल फार्मिंग सिस्टम, ऑर्गेनिक गार्डनिंग किट, फलदार पौधे, स्प्रेयर, ड्रिप सिस्टम और ऑन-साइट सपोर्ट जैसी सुविधाएं प्रदान की जाती हैं।
अपने मकान के मालिक इस योजना के अंतर्गत अधिकांश दो इकाइयों का फायदा प्राप्त कर सकते हैं। अपार्टमेंट के निवासियों को यह योजना सोसाइटी की अनुमति के बाद ही उपलब्ध होगी। वहीं, शैक्षणिक और अन्य संस्थानों को अधिकतम पांच इकाइयों तक का फायदा दिया जाएगा।
योजना के तहत लाभार्थियों को खेती से संबंधित सभी आवश्यक उपकरण उपलब्ध कराए जाएंगे, जिनमें शामिल हैं:
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अगर किसी के पास 300 वर्ग फीट की जगह नहीं है, तो वह गमले की योजना का लाभ उठा सकता है। गमले की योजना की कुल लागत प्रति इकाई 8,975 रुपये है, जिसमें 75% यानी 6,731.25 रुपये का अनुदान सरकार द्वारा दिया जाएगा। लाभार्थी को मात्र 2,243.75 रुपये का भुगतान करना पड़ेगा।
इस योजना के तहत लोगों को फलों, औषधीय पौधों, सजावटी पौधों और स्थायी फूलों के पौधों को लगाने का अवसर मिलेगा। एक लाभार्थी अधिकतम पांच यूनिट तक इस योजना का लाभ उठा सकता है। संस्थानों को इस योजना का लाभ नहीं दिया जाएगा।
गमले की योजना के तहत लाभार्थियों को विभिन्न प्रकार के पौधे उगाने का अवसर मिलेगा। इनमें निम्नलिखित पौधे शामिल हैं:
अमरूद, आम, नींबू, चीकू, केला, सेब बेर (अधिकतम 5 पौधे)
पुदीना, तुलसी, एलोवेरा, अश्वगंधा, स्टीविया, करी पत्ता, लेमन ग्रास, वसक (अधिकतम 5 पौधे)
गुलाब, टैगोर, चमेली, हिबिस्कस, आलमोंडा, बोगनवेलिया (अधिकतम 10 पौधे)
अरेका पाम, मनी प्लांट, स्नेक प्लांट, क्रोटन, सिंगोनियम, क्रिसमस प्लांट (अधिकतम 10 पौधे)
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छत पर बागवानी योजना का लाभ लेने के लिए इच्छुक व्यक्ति बिहार सरकार के उद्यान निदेशालय की आधिकारिक वेबसाइट पर जाकर लिंक पर ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं।
आवेदन करने के बाद लाभार्थी को योजना के तहत अपनी अंश राशि यानी अपने भाग का पैसा जमा करना पड़ेगा। जैसे ही लाभार्थी की राशि संबंधित बैंक खाते में जमा होगी, आगे की प्रक्रिया शुरू की जाएगी।
बिहार सरकार की इस सराहनीय पहल के मद्देनजर जारी की गई शहरी क्षेत्रों में बागवानी की वजह से गर्मियों में पर्यावरण का अधिक तापमान होने से बचेगा।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहल से मोटे अनाज को 'श्री अन्न' के रूप में बढ़ावा दिया जा रहा है, जिससे किसानों को सीधा लाभ मिल रहा है।
बाजरे के समर्थन मूल्य में वृद्धि होने से किसानों की आय बढ़ी है और वे अधिक उत्साह के साथ इसकी खेती कर रहे हैं। सरकार की नीतियों और योजनाओं से बाजरा उत्पादन में वृद्धि होने की पूरी संभावना है, जिससे किसानों की आर्थिक स्थिति और भी मजबूत होगी।
वहीं, राजस्थान विधानसभा में प्रश्नकाल के दौरान खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री सुमित गोदारा ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा मोटे अनाज को 'श्री अन्न' घोषित करने के बाद बाजरे के समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी हुई है। इसका सीधा लाभ प्रदेश के किसानों को मिल रहा है।
मंत्री सुमित गोदारा ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा श्री अन्न (मोटे अनाज) को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं शुरू की गई हैं।
इसके तहत किसानों को जागरूक किया जा रहा है और उन्हें अधिक उपज के लिए आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराए जा रहे हैं।
उन्होंने बताया कि सरकार ने बाजरे के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) में वृद्धि की है, जिससे किसानों को उचित दाम मिल रहे हैं।
खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री ने प्रश्नकाल के दौरान बताया कि बाजरा के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) में पिछले दस वर्षों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
वर्ष 2014 में बाजरे का समर्थन मूल्य ₹1250 प्रति क्विंटल था, जो 2024 में बढ़कर ₹2625 प्रति क्विंटल हो गया है। वर्ष 2024-25 में विभिन्न राज्यों में बाजरे की खरीद इस प्रकार हुई है।
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मंत्री ने विधायक पब्बाराम विश्नोई के मूल प्रश्न के लिखित जवाब में बाजरे के उत्पादन के आंकड़े भी साझा किए।
हालांकि, उन्होंने साफ किया कि वर्ष 2021-22 से 2023-24 तक न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर बाजरा खरीद के लिए कोई लक्ष्य तय नहीं किया गया था। और ना ही इस अवधि में MSP पर खरीद हुई।
सरकार की तरफ से यह भी कहा गया कि किसानों को उनकी पैदावार का सही मूल्य दिलाने के लिए बाजार आधारित तंत्र पर काफी जोर दिया जा रहा है।
बाजरे के समर्थन मूल्य में वृद्धि होने से किसानों की आय में भी बढ़ोतरी हुई है। राजस्थान के किसान बाजरे की खेती की तरफ काफी ज्यादा आकर्षित हो रहे हैं। बाजरे की फसल से किसानों को निम्नलिखित लाभ होंगे।
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राजस्थान में बाजरा एक प्रमुख फसल है और इसे कम पानी वाले क्षेत्रों में भी आसानी से उगाया जा सकता है। राज्य सरकार किसानों को आधुनिक कृषि तकनीक और उन्नत बीजों की सुविधा प्रदान कर रही है, जिससे बाजरे के उत्पादन में बढ़ोतरी हो रही है।
राज्य सरकार और केंद्र सरकार मिलकर किसानों को श्री अन्न की खेती के लिए प्रोत्साहित कर रही हैं। इसके तहत विभिन्न योजनाएं चलाई जा रही हैं, जिनमें उन्नत बीज, सिंचाई की सुविधाएं और मार्केटिंग सपोर्ट शामिल हैं। इसके अतिरिक्त सरकार बाजरे के भंडारण और विपणन के लिए भी नई रणनीतियां तैयार कर रही हैं।
मोटे अनाज के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए राजस्थान सरकार ने समर्थन मूल्य में वृद्धि करके काफी अहम कदम उठाया है।
भारत की केंद्र और राज्य सरकारें किसानों की आमदनी को दोगुना करने के उद्देश्य से लगातार कोई न कोई कल्याणकारी योजना जारी करती रही हैं।
अब इसी कड़ी में कृषकों को सिंचाई सुविधा मुहैय्या कराने के मकसद से केंद्र व राज्य सरकार की तरफ से विभिन्न प्रकार की योजनाएं जारी की जा रही हैं। बतादें कि बिहार सरकार द्वारा किसानों को खेत में नलकूप लगवाने की सुविधा प्रदान की जा रही है।
मुख्य बात यह है, कि नलकूप लगाने के लिए कृषकों को 50 से 80% प्रतिशत तक अनुदान का लाभ प्रदान किया जा रहा है।
इसकी वजह से किसान आधी या उससे भी कम कीमत पर नलकूप लगवाकर सिंचाई की सुविधा हांसिल कर सकते हैं। बिहार के इच्छुक किसान राज्य सरकार की नलकूप योजना के अंतर्गत आवेदन करके योजना का फायदा हांसिल कर सकते हैं।
किसानों को खेती के लिए सिंचाई की सुविधा मिल सके, इसके लिए राज्य सरकार की तरफ से नलकूप योजना 2025 के अंतर्गत आवेदन की प्रक्रिया शुरू की गई है। इस योजना के तहत किसानों को सब्सिडी पर नलकूप लगाने की सुविधा दी जाती है।
नलकूप योजना के अंतर्गत श्रेणी वर्ग के मुताबिक किसानों को अलग–अलग अनुदान दिए जाने का प्रावधान है। योजना के अंतर्गत राज्य सरकार की तरफ से किसानों को अधिकतम 91,200 रुपए की सब्सिड़ी दी जाती है। ऐसी स्थिति में किसान सरकारी सब्सिडी का फायदा उठाकर कम खर्च में नलकूप लगवा सकते हैं।
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किसानों को श्रेणी वर्ग के आधार पर अलग-अलग अनुदान दिया जाता है। आइए जानते हैं, बिहार की नलकूप योजना के बारे में।
आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि नलकूप योजना के तहत दक्षिण बिहार के किसानों को अधिक अनुदान राशि दी जाएगी, ऐसा इसलिए कि वहां नलकूप की गहराई अधिकतम 70 मीटर तक हो सकती है।
ऐसे में दक्षिण बिहार के किसानों को नलकूप कराने में खर्चा अधिक आएगा। इसलिए अनुदान भी अधिक दिया जा रहा है।
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बिहार सरकार की नलकूप योजना का फायदा मधुबनी, पूर्णिमा, सुपौल, दरभंगा, अररिया, कटियार, खगड़िया, सहरसा व किशनगंज जनपद के किसानों को दिया जाएगा। नलकूप योजना का फायदा रैयत और गैर रैयत दोनों ही तरह के किसान उठा सकते हैं।
यहां रैयत किसान से तात्पर्य उन किसानों से है, जो स्वयं की भूमि पर खेती कर रहे हैं और गैर रैयत किसान वह है जो दूसरे की जमीन पर खेती करते हैं। इस योजना का लाभ लेने के लिए किसान के पास कम से कम 0.5 एकड़ की जमीन होना जरूरी है।
किसान नलकूप योजना 2025 के तहत लाभ हांसिल करने के लिए राज्य के किसानों को बिहार सरकार की आधिकारिक वेबसाइट https://horticulture.bihar.gov.in/ पर जाकर ऑनलाइन आवेदन करना पड़ेगा।
आवेदन के बाद जिले के इंजीनियर विशेषज्ञ, कृषि इंजीनियर, कृषि समन्वयक, कंपनी के प्रमाणित इंजीनियर सहित जिला बागवानी विकास समिति के अध्यक्ष आवेदन की जांच करेंगे और इसके बाद इसे जिला सहायक निदेशक उद्यान द्वारा संधारित किया जाएगा।
किसान साथियों, बिहार सरकार की इस नलकूप योजना से जुड़ी अधिक जानकारी के लिए आप अपने निकटतम कृषि विभाग या उद्यान विभाग से भी संपर्क कर सकते हैं।
बिहार सरकार की इस नलकूप योजना के तहत दी जा रही अच्छी खासी अनुदान राशि से किसानों को सिंचाई की समस्या से छुटकारा मिलेगा। इसके साथ साथ किसान अपने खेत में खड़ी फसल से काफी अच्छी उपज हांसिल कर सकते हैं।
हरियाणा सरकार ने भी अब अपना बजट 2025–26 पेश कर दिया है। हरियाणा बजट 2025–26 में किसानों पर खास ध्यान दिया गया है।
इस बजट को हरियाणा के इतिहास का सबसे बड़ा बजट कहा जा रहा है। क्योंकि, हरियाणा सरकार ने इस बार 2 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का बजट पेश किया है।
मुख्यमंत्री नायब सैनी ने 2 लाख 5 हजार 17 करोड़ रुपए का बजट पेश किया है, जो 2024–25 के संशोधित अनुमान से 13.70% प्रतिशत ज्यादा है।
बजट की प्रमुख घोषणाओं में महिला किसानों को एक लाख रुपए का ऋण बिना ब्याज के प्रदान किया जाएगा। इसके अलावा भी बजट में कई महत्वपूर्ण घोषणाएं की गई हैं।
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लवणीय अथवा नमकीन जमीन को पुर्नजीवित किए जाने के चालू साल के 62,000 एकड़ के लक्ष्य को 1 लाख एकड़ करने का प्रस्ताव है।
मेरा पानी मेरी विरासत योजना के तहत धान की खेती करने वाले किसानों की अनुदान राशि को 7,000 रुपए प्रति एकड़ से बढ़ाकर 8,000 रुपए प्रति एकड़ किया गया है।
गुरुग्राम में फूल मंडी के निर्माण का प्रस्ताव दिया गया है। गोहाना में एशिया की सबसे बड़ी मंडी बनाकर तैयार की जाएगी।
हरियाणा सरकार ने लाडो लक्ष्मी योजना के लिए 5000 करोड़ रुपए का प्रावधान किया है। हरियाणा में यह योजना जल्द शुरू की जाएगी।
इस संबंध में सीएम सैनी ने कहा कि हमने महिलाओं को हर महीने 2100 रुपए की आर्थिक सहायता देने का वादा किया था। इसे हम लाडो लक्ष्मी योजना से पूरा करेंगे। योजना को अंतिम रूप दिया जा रहा है।
हरियाणा सरकार की तरफ से जारी किए गए बजट में किसानों को लेकर कई कल्याणकारी ऐलान किए गए हैं। हरियाणा सरकार के इन सराहनीय कदमों से निश्चित रूप से किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार आएगा।
किसानों को आर्थिक बल प्रदान करने के मकसद से पीएम किसान योजना के तहत 19वीं किस्त पीएम मोदी 24 फरवरी 2025 को ही जारी कर चुके हैं। इसके बाद किसानों को अब 20वीं किस्त का इंतजार है, जो कि जल्दी ही आने की उम्मीद है।
पीएम किसान योजना के अंतर्गत प्रतिवर्ष किसानों को 6,000 रुपये की धनराशि समान तीन किस्तों में हस्तांतरित की जाती हैं।
सरकार द्वारा 24 फरवरी 2025 को जारी की गई 19वीं किस्त के तहत 22,000 करोड़ रुपये 9.8 करोड़ किसानों के बैंक खातों में ट्रांसफर किए। इन किसानों में 2.41 करोड़ महिला किसान भी शामिल थीं।
पीएम किसान सम्मान निधि योजना के तहत किसानों को हर वर्ष तीन किस्तों में पैसा मिलता है। प्रति चार माह के अंतराल पर एक किस्त जारी की जाती है।
19वीं किस्त फरवरी 2025 में आई थी, इसलिए 20वीं किस्त जून 2025 में आने की आशा है। इसके बाद 21वीं किस्त अक्टूबर 2025 में आ सकती है।
हालांकि, सरकार शीघ्र ही इसकी आधिकारिक तारीख की घोषणा कर सकती है। कृषकों को यह सलाह दी जाती है, कि वह अपने ई-केवाईसी (e-KYC) को शीघ्रता से पूर्ण करें, जिससे उन्हें किस्त मिलने में किसी समस्या का सामना ना करना पड़े।
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पीएम किसान सम्मान निधि योजना फरवरी 2019 में जारी की गई थी। इस योजना का प्रमुख उद्देश्य छोटे और सीमांत कृषकों को आर्थिक सहायता प्रदान करना है। इसकी वजह से किसान बीज, खाद, कीटनाशक और खेती से जुड़ी अहम आवश्यकताओं को पूर्ण कर सकें।
पीएम किसान सम्मान निधि योजना के तहत हर साल किसानों को 6,000 रुपये मिलते हैं, जो तीन बराबर किस्तों में उनके बैंक खाते में भेजे जाते हैं। यह योजना किसानों को साहूकारों के कर्ज से बचाव करने में भी सहयोग करती है।
यदि कोई किसान पीएम किसान सम्मान निधि योजना का फायदा उठाने के लिए सबसे पहले आपको PM-KISAN पोर्टल पर ऑनलाइन पंजीकरण कराना होगा।
इसके अतिरिक्त किसान अपने किसी नजदीकी कॉमन सर्विस सेंटर (CSC) या राज्य सरकार के अधिकारी के जरिए से ऑफलाइन आवेदन कर सकते हैं।
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पीएम किसान योजना का लाभ लेने के लिए ई-केवाईसी (e-KYC) बेहद जरूरी है। इसको तीन तरीकों से किया जा सकता है।
अगर किसी किसान ने e-KYC का कार्य पूरा नहीं कराया तो उसको 20वीं किस्त की धनराशि नहीं दी जाएगी। इसलिए सभी किसानों को सलाह दी जाती है, कि वे जल्द से जल्द अपनी e-KYC का कार्य पूरा कर लें।
पीएम किसान सम्मान निधि योजना से करोड़ों किसानों को फायदा हुआ है। अगर आप भी इसका फायदा उठाना चाहते हैं, तो जरूरी प्रक्रिया पूरी करें और 20वीं किस्त की प्रतीक्षा करें।
टोल-फ्री नंबर 1800-180-1551 पर कॉल करें। यहां पर किसान कॉल सेंटर के प्रतिनिधि आपकी शिकायत दर्ज करेंगे और समाधान बताएंगे।
पीएम किसान सम्मान निधि योजना किसानों को कृषि में आने वाली लागत की मार से बचाने के लिए आर्थिक मदद प्रदान करती है।
देश की केंद्र और राज्य सरकारें अपने अपने स्तर से किसानों के हित में कई सारी कल्याणकारी योजनाऐं जारी करती रही हैं।
किसानों को आर्थिक रूप से मजबूत करने की कड़ी में बिहार सरकार भी लगातार किसानों के लिए लाभकारी योजनाएं शुरू की हैं।
अब राज्य सरकार ने कृषि यांत्रिकरण योजना के अंतर्गत फसल अवशेष प्रबंधन के लिए किसानों को 8 कृषि उपकरणों पर 75-80% प्रतिशत तक अनुदान प्रदान कर रही है।
बिहार में कृषकों को फसल अवशेष प्रबंधन के लिए सरकार की तरफ से कृषि यांत्रिकरण योजना के तहत सब्सिड़ी दी जा रही है।
बिहार के उपमुख्यमंत्री-सह-कृषि मंत्री, विजय कुमार सिन्हा ने बुधवार को कहा कि "राज्य के कुछ जिलों में गेहूं की कटनी शुरू हो रही है।
यही समय है, कि किसान भाई-बहन गेहूं की खूंटी, अवशेष आदि को खेतों में नहीं जलायें, बल्कि उसका उचित प्रबंधन करें। फसल अवशेष को खेतों में जलाने से मिट्टी का तापमान बढ़ता है।
इसके परिणामस्वरूप मिट्टी में उपलब्ध जैविक कार्बन जल कर नष्ट हो जाता है। इसके कारण मिट्टी की उर्वरा-शक्ति कम हो जाती है।
साथ ही, मिट्टी का तापमान बढ़ने के कारण मिट्टी में उपलब्ध सूक्ष्म जीवाणु, केंचुआ आदि मर जाते हैं। इनके मिट्टी में रहने से ही मिट्टी जीवंत कहलाता है।"
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उपमुख्यमंत्री विजय सिन्हा ने बताया कि फसल अवशेषों को जलाने से जमीन में उपलब्ध जरूरी पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं, मिट्टी में नाईट्रोजन की कमी हो जाती है, जिसके कारण फसलों का उत्पादन घटता है।
इसके लिए सभी जिलों में किसानों को प्रशिक्षित एवं जागरूक किया जा रहा है तथा जिन-जिन इलाकों में ऐसी समस्याएं ज्यादा थी, वहां के किसान सलाहकारों एवं कृषि समन्वयकों को यह निर्देश दिया गया है, कि वह गांव-गांव जाकर किसानों से मिले तथा उन्हें जागरूक करें।
सभी जिला पदाधिकारियों को भी इसका लगातार अनुश्रवण करने का निर्देश दिया गया है।
सभी कृषि महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों के वैज्ञानिकों को भी इस संबंध में किसानों को प्रशिक्षित करने एवं इसके कुप्रभाव के बारे में जानकारी देने का भी निर्देश दिया गया है।
उपमुख्यमंत्री विजय सिन्हा ने कहा कि सरकार द्वारा कृषि यांत्रिकरण योजना के अंतर्गत किसानों को फसल अवशेष का प्रबंधन करने से संबंधित कृषि यंत्रों जैसे- हैप्पी सीडर, रोटरी मल्चर, स्ट्रॉ बेलर, सुपर सीडर, स्ट्रॉ मैनेजमेंट सिस्टम (एस॰एम॰एस॰), रोटरी सलेशर, जीरो टिलेज/सीड-कम-फर्टिलाईजर, पैडी स्टॉचौपर आदि यंत्रों पर 75 से 80% प्रतिशत तक अनुदान दिया जा रहा है।
उपमुख्यमंत्री विजय सिन्हा ने कहा कि फसल अवशेष जलाने वाले किसानों को अभी डी॰बी॰टी॰ के माध्यम से विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत मिलने वाले अनुदान से वंचित किया जा रहा है, अब उन्हें गेहूं अधिप्राप्ति के लाभ से भी वंचित करने की कार्रवाई की जाएगी।
बार-बार फसल अवशेष जलाने वाले किसानों पर Cr.P.C के सुसंगत धारा-133 के तहत एवं आवश्यक निरोधात्मक कार्रवाई की जाएगी। इस प्रकार की कार्रवाई का संदेश आम लोगों तक पहुंचे, जिससे वे खेतों में फसल अवशेष को न जलायें।
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उपमुख्यमंत्री विजय सिन्हा ने राज्य के किसान भाइयों एवं बहनों से अपील किया कि फसल अवशेषों को खेतों में जलाने की वजाय मिट्टी में मिला दें या उससे वर्मी कम्पोस्ट बनायें अथवा पलवार विधि से खेती करें।
ऐसा करने से मिट्टी का स्वास्थ्य अच्छा बना रहेगा एवं फसलों का गुणवत्तापूर्ण तथा अधिक उत्पादन होगा, जिससे किसानों की आमदनी भी बढ़ेगी।
अगर आप बिहार राज्य के मूल निवासी हैं तो आप सरकार की कृषि यांत्रिकरण योजना का लाभ उठाकर अपनी फसलों का अवशेष प्रबंधन कर काफी अच्छी उपज प्राप्त कर सकते हैं।
बीते कई महीनों से घरेलू बाजार में दालों की कीमत काफी ज्यादा चल रही हैं। दालों की बढ़ती कीमत का कारण दलहन का कम उत्पादन है।
विगत दो वर्षों के अंदर भारत में दालों का उत्पादन काफी कम हुआ है। इससे दालों की समस्या काफी रही है और मूल्य ज्यादा देखे गए हैं।
इस मूल्य की वजह से ही सरकारी एजेंसियों ने किसानों से दालें नहीं खरीदी हैं। यदि सरकारी एजेंसियां दालों की अधिक कीमत पर खरीद करेंगी तो बाजार में भी ज्यादा दाम पर दालें बिकेंगी।
सरकार की तरफ से पीली दाल के ड्यूटी फ्री आयात को स्वीकृति दे दी है। इसको आगामी तीन महीने के लिए बढ़ा दिया गया है।
यानी मई माह तक भारत के अंदर बगैर किसी टैक्स के पीली दाल का आयात हो पाएगा। दूसरी तरफ, मसूर दाल के आयात पर 10% प्रतिशत की ड्यूटी लगाई गई है।
इन दोनों कदमों से एक तरफ जहां किसानों को हानि होगी तो दूसरी तरफ ग्राहकों को फायदा मिलेगा। हालांकि, देश में दालों की स्थिति में थोड़ा सुधार जरूर होगा, क्योंकि बाजार में इसकी आपूर्ति काफी बढ़ेगी।
दरअसल, किसी भी चीज का आयात बढ़ने पर घरेलू बाजार में विदेशी उत्पाद की आवक ज्यादा बढ़ जाती है। आवक बढ़ने से उस उत्पाद की कीमत गिर जाती है।
दालों के मामले में देखें तो यदि पीली दाल का आयात बढ़ेगा तो यहां के स्थानीय किसानों की पैदावार को ज्यादा भाव नहीं मिलेगा। क्योंकि बाजारों में विदेशी दालों की आपूर्ति काफी बढ़ जाएगी।
इस प्रकार किसान को हानि की संभावना रहेगी। दूसरी तरफ आम ग्राहकों को इसका लाभ मिलेगा। दालों की आपूर्ति बढ़ने से ग्राहकों को पीली दाल काफी सस्ती कीमतों पर मिलेगी।
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दालों की मांग लगातार बढ़ रही है, जिसकी पूर्ति के लिए सरकार को विदेशों से आयात करना पड़ा है। इसी में पीली दाल और मसूर दाल प्रमुख हैं।
पीली दाल की मांग बहुत अधिक होती है। क्योंकि प्रोसेसिंग में इसका सबसे अधिक इस्तेमाल होता है। जहां चना दाल की कमी होती है, वहां पीली दाल से काम चलाया जाता है।
यहां तक कि कम आय वाले या गरीब परिवारों के लिए यह दाल सबसे खास है। इसी को ध्यान में रखते हुए सरकार इसके आयात को फ्री ड्यूटी में रखती है, ताकि इसकी आपूर्ति बरकरार बनी रहे।
वर्तमान में लिए गए सरकार के इस फैसले की बात करें तो पीली मटर का सर्वाधिक आयात कनाडा, रूस और ऑस्ट्रेलिया से किया जाता है।
सरकार आगे भी इन्हीं 3 देशों से पीली मटर को सबसे ज्यादा मंगवाएगी। सूत्रों के अनुसार, घरेलू बाजार में दाल की आपूर्ति को बेहतर रखने के लिए सरकार ने पीली दाल को ड्यूटी फ्री रखा है।
इसकी सप्लाई को लगातार बनाए रखने के लिए दिसंबर 2023 में सरकार ने ड्यूटी फ्री आयात का ऐलान किया था। यह दाल चने की जगह इस्तेमाल होती है और दाम भी बहुत कम रहता है।
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पीली दाल के फ्री इंपोर्ट को सरकार द्वारा बहुत बार लागू किया गया है। सरकार को जब लगता है, कि देश में चने का उत्पादन कम होगा, तब पीली मटर के आयात को बढ़ा दिया जाता है। इसके विपरीत में जब सरकार को लगता है, कि भारत में दालों की खेती को ज्यादा से ज्यादा प्रोत्साहन देना है।
वह आयात शुल्क को बहुत ज्यादा बढ़ा देती है। इसी कड़ी में 2017 में सरकार ने पीली मटर के आयात पर 50% प्रतिशत का शुल्क लगाया था, जिससे कि देश में चने की खेती को प्रोत्साहन मिल सके। इसका लाभ उस वर्ष से लेकर अभी तक दिख रहा है।
आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, 2024 में 67 लाख टन दालों के कुल आयात में से पीली मटर का आयात तकरीबन 30 लाख टन था।
दालों का सबसे बड़ा उत्पादक होने के बावजूद भारत इस अंतर को पाटने के लिए तकरीबन 290 लाख टन की वार्षिक दालों की मांग को पूर्ण करने के लिए तकरीबन 15-18% प्रतिशत के आयात पर निर्भर करता है।
उपरोक्त में सरकार की तरफ से उठाए गए कदमों की वजह से निश्चित रूप से दालों की कीमतों में सुधार होगा।
बिहार के पशुपालकों के लिए एक राहत की खबर आई है। अब उन्हें अपने दुधारू मवेशियों के बीमा कराने की चिंता नहीं करनी पड़ेगी।
राज्य के पशु एवं मत्स्य संसाधन विभाग के गव्य निदेशालय द्वारा दुधारू मवेशियों के लिए एक विशेष बीमा योजना जारी की गई है।
बिहार सरकार की इस बीमा योजना का मुख्य उद्देश्य पशुपालकों को गंभीर बीमारियों और अन्य कारणों से मवेशियों की मौत होने पर पहुँचने वाले आर्थिक नुकसान से बचाव प्रदान करना है।
बीमा योजना के अंतर्गत पशुपालकों को बीमा की राशि का महज 25% प्रतिशत ही भुगतान करना पड़ेगा। वहीं, बची हुई धनराशि की शेष 75% प्रतिशत राशि राज्य सरकार की तरफ से वहन की जाएगी।
इसका मतलब है, कि सरकार पशुपालकों के लिए आर्थिक बोझ को कम करेगी। इससे उनकी आर्थिक स्थिति पर किसी तरह का नकारात्मक असर नहीं पड़े।
बीमा योजना की यह पहल ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी मजबूत करने की दिशा में अत्यंत महत्वपूर्ण कदम है।
खबरों के मुताबिक, दुधारू मवेशियों का अधिकतम मूल्य 60,000 रुपये निर्धारित किया गया है। इस पर 3.5 प्रतिशत की दर से कुल बीमा धनराशि 2100 रुपये होगी।
इसमें से 1575 रुपये राज्य सरकार की तरफ से अनुदान स्वरूप दिए जाएंगे। वहीं, बचे हुए 525 रुपये पशुपालकों को बीमा कंपनी को देने पड़ेंगे।
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बीमा योजना का प्रमुख उद्देश्य पशुपालकों को गंभीर बीमारियों जैसे- लंपी त्वचा रोग, एचएसबीक्यू और अन्य वजहों से मवेशियों की मृत्यु की वजह से होने वाले आर्थिक नुकसान से बचाना है।
सरकार के इस बीमा कवर के अंतर्गत पशुपालकों को उनके दुधारू मवेशियों के इलाज और मृत्यु के मामलों में वित्तीय सुरक्षा मिलेगी।
इससे वह किसी भी आपातकालीन स्थिति में अपने मवेशियों की देखभाल में सक्षम हो सकेंगे। इसके अलावा योजना में दुग्ध उत्पादक सहयोग समितियों के सदस्यों को प्राथमिकता प्रदान की जाएगी।
सिर्फ यही नहीं बीमा के लिए मवेशियों का स्वस्थ रहना भी जरूरी है। एक पशु चिकित्सक द्वारा स्वास्थ्य प्रमाण पत्र जारी किया जाएगा।
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पशुपालकों को बिहार सरकार की इस योजना का लाभ उठाने के लिए गव्य विकास निदेशालय की आधिकारिक वेबसाइट https://dairy.bihar.gov.in पर ऑनलाइन आवेदन करना पड़ेगा।
आवेदन की प्रक्रिया पूर्णतय डिजिटल होगी, जिससे आवेदकों को सुविधा होगी। वह घर बैठे इस योजना का फायदा उठा सकते हैं।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इस योजना का कार्यान्वयन जिला गव्य विकास पदाधिकारी के जरिए किया जाएगा। बीमा कंपनी द्वारा दुधारू मवेशियों का बीमा एक साल के लिए किया जाएगा।
साथ ही, इन मवेशियों में डाटा ईयर टैग भी लगाया जाएगा, जिसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी पूरी तरह से लाभार्थी की होगी।
बिहार सरकार की तरफ से जारी की गई यह बीमा योजना निश्चित रूप से किसानों की आर्थिक शक्ति को मजबूत करेगी। इच्छुक किसान ऑनलाइन आवेदन कर लाभ उठाएं।
भारत की केंद्र और राज्य सरकारें किसानों के लिए अपने अपने स्तर से नई नई योजनाएं जारी करती रहती हैं। इसी कड़ी में छत्तीसगढ़ सरकार ने किसानों के लिए कई सारी योजनाएं जारी की हैं।
छत्तीसगढ़ सरकार ने उपरोक्त में दी गई कई कल्याणकारी योजनाओं का ऐलान कर दिया है। सरकार की इन घोषणाओं से किसानों को काफी ज्यादा लाभ मिलेगा।
राजस्थान सरकार ने इस बार गेहूं की खरीद समर्थन मूल्य पर 10 मार्च से शुरू करने का ऐलान कर दिया है।
राज्य के किसान पंजीकरण करवाकर अपनी गेहूं की उपज सरकारी दरों पर आसानी से बेच सकते हैं और बेहतरीन लाभ भी कमा सकते हैं।
यदि आप किसान हैं और गेहूं उगाते हैं, तो जल्दी से अपना पंजीकरण करवाएं। साथ ही, इस योजना का फायदा भी उठाएं।
गेहूं की खरीद भारत सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य पर की जाती है। सरकार यह सुनिश्चित करती है, कि किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य मिले और बाजार में कीमतों के उतार-चढ़ाव का उन पर नकारात्मक प्रभाव न पड़े।
समर्थन मूल्य हर साल सरकार द्वारा तय किया जाता है, जिसे कृषि लागत एवं मूल्य आयोग की सिफारिशों के आधार पर घोषित किया जाता है।
भारतीय खाद्य निगम के मंडल प्रबंधक रविंद्र जादम के अनुसार, इस वर्ष भरतपुर, अलवर, खैरथल-तिजारा, डीग, धौलपुर और करौली जिलों में लगभग 60,000 मीट्रिक टन गेहूं खरीदने का लक्ष्य रखा है। इसके लिए करीब 33 खरीद केंद्र खोले जाएंगे।
किसानों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए विभिन्न जिलों में समर्थन मूल्य पर गेहूं खरीदने के लिए केंद्र स्थापित किए गए हैं। आइए जानते हैं, कि किस जनपद में कितने खरीद केंद्र होंगे।
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भारत सरकार द्वारा गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) ₹2,425 प्रति क्विंटल तय किया गया है।
इसके अलावा, राजस्थान सरकार ने ₹150 प्रति क्विंटल का बोनस देने की घोषणा की है। यानी इस बार किसानों को समकुल 2,575 रुपए प्रति क्विंटल का मूल्य मिलेगा।
गेहूं की समर्थन मूल्य पर खरीद 10 मार्च से 30 जून 2025 तक जारी रहेगी।
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किसानों को सरकार द्वारा निर्धारित ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से रजिस्ट्रेशन करना अनिवार्य होगा। रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया 1 जनवरी 2025 से शुरू हो चुकी है और 25 जून 2025 तक चलेगी। किसान निम्नलिखित माध्यमों से अपना पंजीकरण करा सकते हैं।
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